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एक समय हरियाणा की सियासत तीन लालों देवीलाल, बंसीलाल, भजनलाल के इर्द-गिर्द घूमती थी। वैसे तो सभी लालों की अपनी खासियत थी। लेकिन भजनलाल के व्यक्तित्व का एक पहलू ऐसा था जो दूसरे लालों से उन्हें जुदा करता था। राजनीति की चौसर में भी अपने पर हावी होने वाले विरोधियों को अकस्मात मात दे देना उनकी खूबी थी। हरियाणा की सियासत के प्रारम्भिक सफर में उनके साथी रहे चौधरी देवीलाल, मगर राजनीतिक मतभेदों के चलते वे देवीलाल से अलग हो गए और 1972 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल ने आदमपुर में चौधरी देवीलाल को भी पटखनी देकर अपनी क्षमता का परिचय दिया। इसके बाद वह प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए। राजनीतिक पंडितों ने भजनलाल को राजनीति में पीएचडी की उपाधि से अलंकृत किया। केंद्र में नरसिंह राव की सरकार बचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही थी। इन्हीं राजनीतिक खूबियों की वजह से ही उन्हें आज के युग का चाणक्य भी कहा गया। वह कभी अपने गढ़ आदमपुर से चुनाव नहीं हारे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी वह अपने घर आने जाने वाले लोगों का हालचाल पूछते ही थे साथ ही साथ उनके घर परिवार की सलामती पूछना नहीं भूलते थे। एक वाक्य जो समर्थकों से मिलने के समय हर समय उनकी जुबान पर रहता था। यह ऐसा वाक्य था जो उनसे मिलने आने वाले हर पार्टी कार्यकर्ता चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा, उनकी धमनियों में नए रक्त का संचार कर जाता था, वह वाक्य था, और कोई मेरे लायक सेवा।
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