चौधरी भजनलाल जी – एक अविस्मटणीय व्यक्तित्व

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डा. सर्वदानन्द अार्य पूर्व कुलपति, रोहतक, कुरुक्षेत्र व हिसार विश्वविद्यालय हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्रीबिश्नोई रत्नचौधरी भजनलाल जी एक सशक्त व अद्वितीय व्यक्तित्व के मालिक थे। चौधरी भजनलाल जी का जीवन वृतांत एक आम आदमी की सफलता की कहानी है। हरियाणा ने एक अनमोल रत्न खो दिया है। उनके निधन से एक ऐसा स्थान रिक्त हो गया है कि उसकी भरपाई संभव नहीं है। एक व्यक्ति एक साधारण परिवार में जन्मा हो तथा प्रदेश की राजनीति में सफल हस्ताक्षर करते हुए एक ऐसा आयाम स्थापित करे, ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं। चौधरी भजनलाल ऐसे ही स्वयंसिद्ध राजपुरुषों की श्रेणी में आते हैं। इन पंक्तियों के लेखक का चौधरी भजनलाल जी से सम्पर्क 1982 में हुआ। चौधरी साहब के बड़े बेटे चन्द्रमोहन ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी तथा चण्डीगढ़ के प्रसिद्ध डी.ए.वी. कालेज में प्रवेश पाना चाहते थे। लेखक उन दिनों उसी कालेज में बोटनी विषय के प्राध्यापक थे। एक दिन शाम को चौधरी भजनलाल जो उन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, अपने पी.ए. श्री कामरा जी के साथ मेरे निवास स्थान पर आए। उन्होंने कहा कि मैंने पता लगवाया कि डी.ए.वी कालेज चण्डीगढ़ में हरियाणा का कोई प्रोफेसर हैं, तो आपका पता चला। मैंने कहा कि चौधरी साहब आप आदेश देते तो मैं आपकी कोठी पर ही आ जाता। चौधरी साहब ने कहा कि काम मुझे है, इसलिए मुझे आपसे मिलने आना था। आप मेरे बेटे चन्द्रमोहन को कालेज में प्रवेश हेतु मार्गदर्शन दें तथा आज से आप उनके संरक्षक भी हैं। तदुपरांत मैं जब भी चौधरी भजनलाल से मिलने उनके सरकारी निवास पर गया, वे हमेशा चन्द्रमोहन जी को बुलाते व आदेश देते कि जाओ अपने अध्यापक को जलपान कराओ। मुझे याद है कि एक अवसर पर जब मैं उनसे मिलने गया, तो चौधरी साहब ट्रिब्यून के संवाददाता को इंटरव्यूदे रहे थे। चंन्द्रमोहन घर पर नहीं थे। कुलदीप जी जो उस समय स्कूल में पढ़ते थे, अपने मित्रों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे। चौधरी भजनलाल जी ने कुलदीप जी को बुलाकर कहा कि जाओ प्रो. साहब को ड्राईंग रूप में बैठाओ। ऐसे थे चौधरी भजनलाल व उनका विशाल हृदय।
एक दिन बातों-बातों में उन्होंने मेरे परिवार के बारे में पूछा। मैंने बताया कि मेरी पत्नी मलिक बिहारीलाल जी की पौत्री हैं। चौधरी साहब तुरन्त बोले कि मलिक बिहारी लाल आदमपुर में एस.एच.ओ. हैं व हमारे परिवार के सदस्य की भांति हैं। बस उस दिन से उन्होंने मुझे छोटे भाई व पुत्र का स्थान दिया तथा आज तक मुझे चौधरी साहब के परिवार में वही मान सम्मान मिलता रहा है। चौधरी साहब बात के धनी व मित्रों के मित्र थे। उनके मुंह से यदि कोई आश्वासन मिल जाता तो उनका सतत प्रयास रहता कि वह कार्य सम्पन्न हो जाए। हरियाणा में ऐसे हजारों आदमी हैं, जिनका कल्याण चौधरी साहब के हाथों में हुआ। मैं स्वयं इसका उदाहरण हूं। डी.ए.वी. कॉलेज में पुण्डरी के प्रिंसीपल पद पर मेरा चयन हो गया, परन्तु नियुक्ति पत्र नहीं मिला। मैं चौधरी साहब के पास गया। उन्होंने पूछा कि डी.ए.वी. कॉलेज मैनेजिंग कमेटी के प्रधान कौन हैं?मैंने बताया कि प्रधान प्रो. वेदव्यास हैं, जो सुप्रीमकोर्ट के सफल वकील हैं तथा जनता पार्टी के शासनकाल में श्रीमती इंदिरा गांधी के भी वकील थे। कुछ दिनों के बाद चौधरी साहब मुझे साथ लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत सरकार थीं, के कार्यालय में गये और चौधरी साहब ने तुरंत प्रधानमंत्री जी के निजी सचिव श्री आर.के. धवन से प्रो. वेदव्यास जी को फोन करवाया। इस प्रकार मुझे प्रिंसीपल के रूप में पहला नियुक्ति पत्र मिला। चौधरी भजनलाल जी के असंख्य उपकार मेरे ऊपर हैं। तदुपरान्त चौधरी साहब के सहयोग से मुझे दयानन्द कॉलेज, हिसार का प्रिंसीपल, महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी रोहतक का प्रो. वाइस चांसलर, कुरुक्षेत्र युनिवर्सिटी का वाइस चांसलर तथा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार का वाइस चांसलर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं आज तक इस उपकारी महापुरुष के उपकारों को स्मरण करता हूं। मुझे एक और ऐसा संस्मरण भी याद आता है। चौधरी साहब हरियाणा की राजनीति छोड़कर केन्द्र सरकार में वन व पर्यावरण मंत्री बने। मुझे आदेश हुआ कि भगवान जम्भेश्वर जी द्वारा अनुमोदित खेजड़ी वृक्ष पर शोध करो तथा शोध संस्थान बनाओ। मैंने खेजड़ी शोध हेतु एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट चौधरी साहब के पर्यावरण मंत्रालय को दी। उस समय श्री टी.एन. शेषन (जो बाद में मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने) मंत्रालय के सचिव पद पर थे। उन्होंने प्रोजेक्ट को पास करने में आनाकानी की। चौधरी साहब ने शेषन जी को बुलाकर मेरे सम्मुख ही भगवान जम्भेश्वर जी की जीवन गाथा, जोधपुर रियासत में खेजड़ी की रक्षा के लिए 363 बिश्नोई नर-नारियों के बलिदान की गाथा तथा गुरु जी द्वारा प्रतिपादित 29 नियमों की व्याख्या समझाई। शेषन जी भी प्रभावित हुए। प्रोजेक्ट पास हुआ। दयानन्द कॉलेज हिसार में शोध संस्थान बना। चार छात्रों को इस पवित्र वृक्ष पर शोध करने के लिए पीएच.डी. की उपाधि मिली, 100 से अधिक शोधपत्र तथा दो पुस्तकें खेजड़ी पर लिखी गई तथा आज विश्वभर के शोध संस्थानों में उपर्युक्त ग्रंथ उपलब्ध हैं।
अंत में यदि मैं चौधरी भजनलाल जी के साथ बिताए हुए अपने यादगार पलों को लिखता रहूं तो सैकड़ों पृष्ठ भर जाएंगे। मेरे ऊपर उनकी असीम कृपा व विशेष स्नेह रहा। चौधरी साहब के निधन से मैंने अपना बुजुर्ग, सहायक, स्नेही पिता समान व्यक्ति को खोया है, जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि प्रभु उन्हें अपने चरणों में स्थान दें तथा हम उनके बताए आदशों पर चलते रहें।

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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