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गुरु जम्भेश्वर के उपदेश: सत्य और सत्यनिष्ठा

नमस्ते। मैं गुरु जम्भेश्वर, बिश्नोई पंथ का संस्थापक, आपके समक्ष उपस्थित हूँ। आज, इस क्षण में, ज्ञान के सागर से आपके लिए एक विशेष मोती चुनकर लाया हूँ।

आज का विषय है: सत्य और सत्यनिष्ठा (Truth and Truthfulness)

कहानी:

कल्पना कीजिए, मेरे प्रिय श्रोताओं, कि आप एक ऐसे जंगल में खड़े हैं जहाँ हर ओर भ्रम और अंधकार है। लोग एक-दूसरे से झूठ, छल और कपट में उलझे हुए हैं। ऐसे में, सत्य का प्रकाश एक दीपक के समान है जो रास्ता दिखाता है।

मैंने अपने अनुयायियों को ‘सत’ को जीवन का आधार बनाने का उपदेश दिया है। यह केवल मुँह से झूठ न बोलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आपके विचार, आपकी भावना और आपके कर्मों की शुद्धता है। जब आप सत्य बोलते हैं, तो आपके भीतर कोई द्वंद्व नहीं रहता। आप बाहरी दुनिया के सामने जैसे हैं, वैसे ही आंतरिक रूप से भी होते हैं।

एक बार एक व्यक्ति मेरे पास आया, उसके मन में बहुत बोझ था। उसने कहा, “गुरुदेव, मैं दुनिया को धोखा देकर धन कमा रहा हूँ, पर रात को चैन नहीं मिलता।” मैंने उसे सरल शब्दों में समझाया, “बेटा, जैसे दीमक लकड़ी को अंदर से खोखला कर देती है, वैसे ही झूठ और अहंकार मनुष्य के आत्मिक सार को नष्ट कर देते हैं। सत्य वह जल है जो हर प्यास बुझाता है और मन को शांति देता है।”

आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता:

आज के इस डिजिटल युग में, जहाँ सूचनाओं का अंबार है और ‘फेक न्यूज़’ (झूठी खबरें) जंगल की आग की तरह फैलती हैं, सत्यनिष्ठा का महत्व और भी बढ़ जाता है।

  • व्यापार और कार्यस्थल: यदि आप अपने काम में ईमानदारी नहीं रखेंगे, तो आपका विश्वास खो जाएगा। विश्वास ही आधुनिक अर्थव्यवस्था की नींव है।
  • रिश्ते: रिश्तों की डोर सत्य से बँधती है। एक छोटा सा झूठ भी उस डोर को कमजोर कर सकता है।
  • आत्म-शांति: सबसे महत्वपूर्ण बात, जब आप सत्य बोलते हैं, तो आपको किसी बात को छिपाने का डर नहीं रहता। यह आंतरिक स्वतंत्रता और मोक्ष की ओर पहला कदम है।

याद रखिए, ‘सत’ केवल एक शब्द नहीं, यह जीवन जीने की कला है। सत्य का आचरण करें, और आप स्वयं को परमात्मा के करीब पाएंगे।


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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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