अलग ही थी चौधरी साहब की कार्यशैली

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

हेतराम धारनियां, से.नि. एस.पी. (I.B.) 200, सैक्टर 15-ए, हिसार
स्वतंत्र भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता चौधरी भजनलाल जी की लोकप्रियता का एकमात्र रहस्य उनकी कार्यशैली थी। उनकी इस कार्यशैली ने जनमानस के हृदय पटल पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है, जो अमिट है। एक बार किसी कार्य को लेकर जो उनके दरबार में जाता था, वह उन्हीं का हो जाता था, क्योंकि उसे आशा से कहीं अधिक सहयोग, स्नेह व मान मिलता था। मौके पर ही समस्या का निपटारा उनकी प्राथमिकता रहती थी। इसके अतिरिक्त उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्हें किसी की समस्या या दु:ख दर्द का किसी और माध्यम से भी पता लग जाता था तो भी वे पीड़ित व्यक्ति को अपने पास बुलाकर उसकी समस्या का निदान करते थे। ऐसा स्वभाव किसी और राजनीतिज्ञ में नहीं देखा गया। अपनी इसी कार्यशैली के कारण वे लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे और लोगों के दिलों पर राज करते रहे। उनकी इस अनोखी कार्यशैली का एक उदाहरण मैं स्वयं हूं।
बात अप्रैल, 1967 की है जब चौधरी मनीराम गोदारा, राव वीरेन्द्र सिंह की सरकार में सिंचाई मंत्री बनकर पहली बार हिसार के कैनाल विश्राम गृह में आए थे। मैं भी नौकरी की तलाश में इंग्लैंड जाने के लिए पासपोर्ट बनवाने के सिलसिले में उनसे मिला। कार्य यही था कि पासपोर्ट फार्म किसी प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट से संस्तुत करवाना था। गोदारा साहब ने पहले यही फार्म स्वयं संस्तुत करके जिला उपायुक्त से संस्तुत करवाया भी था। परन्तु इस बार उन्होंने अपनी असमर्थता प्रकट कर दी। मुझे बहुत निराशा हुई और मैं विश्राम गृह में ही एक ओर बैठ गया। चौधरी भजनलाल जी भी उस समय उसी विश्राम गृह में आए हुए थे और वे उस समय जिला पंचायत समिति के चेयरमैन थे। मुझे तब बहुत आश्चर्य हुआ जब वे स्वयं चलकर मेरे पास आए और पूछा, क्या बात कोई काम है क्या?मैंने अपनी वही समस्या चौधरी साहब को बताई। उन्होंने अगले दिन प्रात: कचहरी में मिलने के लिए कहा और चले गए। उस समय वे मुझे एक फरिश्ते की भांति जान पड़े।
अगले दिन प्रात: ही मैं कचहरी में उन द्वारा बताए गए स्थान पर पहुंचकर प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी ही देर बाद चौधरी साहब सफेद धोती कुर्ता पहने फुर्ती से चलते हुए मेरे पास आए और मेरा फार्म लेकर सीधे एस.डी.एम. के कार्यालय में प्रवेश कर गए और मेरा कार्य करवा दिया। कैनाल विश्राम गृह की मुलाकात से पहले मेरा उनसे कोई परिचय नहीं था। इसके बाद तो परिचय घनिष्ठ होता गया और उनकी कार्यशैली को बहुत निकट से देखने का अवसर मिला। चौधरी साहब अपने आगे-पीछे चक्कर कटवाने में नहीं अपितु शीघ्रता से कार्य करने में विश्वास रखते थे। उनकी इसी कार्यशैली से उनके चहेतों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गई और उनके पीछे चलने वालों का कारवां बनता गया। यही कारवां चौधरी साहब की शक्ति थी, जिसके बल पर वे देश और प्रदेश में चर्चित रहे।
नवम्बर,2002 में सेवानिवृत्ति के पश्चात् मैं पूर्णरूपेण चौधरी साहब को समर्पित हो गया। पिछले छ: वर्षों से तो चौधरी साहब ने हिसार को ही अपना स्थायी निवास बना रखा था और पूरा दिन कार्यकर्ताओं के बीच रहते थे। अब सत्ता न होने पर भी चौधरी साहब के पास फरियाद लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था क्योंकि वे सबकी सुनवाई करते थे और हर समय उपलब्ध रहते थे। केवल हरियाणा ही नहीं वे दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल तक भी बड़े-बड़े अधिकारियों और नेताओं को फोन कर लोगों की समस्याओं के निदान का प्रयास करते थे। अधिकतर
फरियादी दूसरी बार समस्या नहीं मिठाई ही लेकर आते थे क्योंकि उनकी समस्या तो दूर हो जाती थी। इससे चौधरी साहब की नेक नीयत, कल्याण की भावना व उनके प्रभाव का पता चलता है।
3 जून, 2011 को उस दुर्भाग्यशाली दिन में भी 12.30 बजे तक हम चौधरी साहब के साथ थे। प्रतिदिन की भांति प्रात: आठ बजे से ही वे बरामदे में बैठकर 12.30 बजे तक लोगों की समस्याओं को सुनते रहे। उस दिन भी उन्होंने अनेक अधिकारियों को फोन कर समस्या निदान के निर्देश दिये थे। हृदयघात से दो मिनट पहले ही उन्होंने नगरपालिका कर्मचारियों की समस्या सुनकर उनका ज्ञापन भी लिया था तथा उनकी समस्याओं के निदान का आश्वासन भी दिया था। किसे पता था कि क्रूर काल इस आश्वासन की हकीकत में नहीं बदलने देगा। भगवान ने असहायों का सहायक छीन लिया। वे सदैव दूसरों का दु:ख हरने को उत्सुक रहते थे। समाज में उनके बहुमुखी योगदान को सभी जानते हैं, उसके विषय में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाना होगा।
प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे उसकी अद्धांगिनी का हाथ होता है। चौधरी भजन लाल जी की सफलता व उपलब्धियों में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जसमां देवी का बहुत बड़ा योगदान था। श्रीमती जसमां देवी चौधरी साहब के अंतिम सांस तक छाया की भांति उनके साथ रही। विशेषकर वृद्धावस्था में अस्वस्थता के दौरान तो श्रीमती जसमांजी ने उनका विशेष ख्याल रखा। उनकी सभी धार्मिक यात्राओं में जसमांजी उनके साथ रहती थी। चौधरी भजनलाल जी के जीवन का सबसे बड़ा संदेश था
मन के हारे हार है मन के जीते जीत, राग द्वेष को छोड़कर, सबसे कर लो प्रीत। उनके इसी आदर्श को अपनाकर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *