Vishnu.1

हरेजस कथा साखी कहो,केवत छंद सिरलोक।

हरेजस कथा साखी कहो,केवत छंद सिरलोक। परमानंद हरि नाम की सोभा तीन्यो लोक॥१०॥ -(परमानंद जी बणिहाल) शब्दार्थ– हरेजस–हरि का यश। कथा–कथा। साखी–साखी। कहो–कहनी चाहिए,कहो। केवत–कविता। छंद–छंद। सिरलोक–श्लोक। परमानंद–परमानंद जी बणिहाल। हरि–विष्णु,परमसत्ता। नांव–नाम। की–की। सोभा–कांति, चमक। तीन्यो लोक–तीनो लोक। सरलार्थ–भगवान विष्णु…

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टोटी टोटी मांगता,माता रोटी देय।

टोटी टोटी मांगता,माता रोटी देय। खीजमत्य खाली न रहे,नांम धणी का लेय॥११॥ -(परमानंद जी बणिहाल) शब्दार्थ– टोटी टोटी–टोटी-टोटी। मांगता–माँगता हैं। माता–प्रथम गुरू। रोटी–रोटी। देय–देती हैं। खीजमत्य–सेवा। खाली–खाली। न–नही। रहे–रहती,जाती। नांम–नाम। धणी–स्वामी। का–का। लेय–लिया हुआ। सरलार्थ–छोटा बच्चा अपनी तोतली बोली में…

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जांभाणी संत कवियों की वाणी

*सेस महेस व्रंभा सहति,नव जोगेसुर नांव।* *मारकुंडे सीनकादिका,प्या गुर हरे को नांव॥२॥* *-(परमानंद जी बणिहाल)* सेस–शेष महेस–महेश। व्रंभा–ब्रह्मा जी। सहति–समेत,सभी। नव–८ से एक ज्यादा,१० से एक कम। जोगेसुर–योगेश्वर, सर्वश्रेष्ठ योगी। नांव–नाम, पहचान के लिए दिया जाने वाला शब्द। मारकुंडे–मार्कंडेय। सीनकादिका–सनक,सनन्दन,…

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जांभाणी संत कवियों की वाणी

🌸जांभाणी संत कवियों की वाणी🌸 नीगम अभ्यास नीस दिन करत,गुर गम नही उजास। सबद ज भेद जासै उरया,सतगुर प्रेम प्रगास॥१॥ -(परमानंद जी बणिहाल) शब्दार्थ– निगम–शास्त्र, विवेचनात्मक ज्ञान विषय ग्रंथ। अभ्यास–किसी कार्य को बार-बार करना। नीस दिन–२४ घंटे, निरंतर, लगातार, हमेशा,…

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Guru is Santoshi

Guru is Santoshi, established in contentment, always dwells in the welfare of others. (His) speech is the essence of nectar. He is beyond speech. He is bliss (parmaananda).   Guru Jambheshwar Bhagwan

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Khej

जाम्भाणी संत सूक्ति

परमानन्दजी वणियाल जो करता सोइ भोग्यता, आडो आवत सोय। अपणौ कीयो भोगवै, हरि कूं दोस न कोय। भावार्थ जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही उसे फल मिलता है, अपने बुरे कर्मों का फल भोगते समय भगवान को दोष नहीं…

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🌺 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌺

परमानन्दजी वणियाल विष वेली अपणै कर वाहै,इम्रत फल कैसे पाई।करै जका लेखा हरि मांगै,जदि जीवड़ो पछताई भावार्थ अपने हाथ से जहर की बेल बोई है तो उसके अमृत फल कहां से लगेंगे।जीवन भर पापकर्मों में रत रहने के बाद मरणोपरांत…

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राव करीजै रंक

अल्लूजी कविया ” राव करीजै रंक,रंकासिर छत्र धरीजै।अल्हू आस वैसे सार,आस कीजै सिंवरीजै।चख लहै अंध पंगा चलण,मौनी सिधायक वयण।तो करता कहा न होय,नारायण पंकज नयण। भावार्थ ‘ राजा को रंक तथा रंक को राजा करने वाला,अंधे को आंख देने वाला,पंगू…

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🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸

🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸 “देखण के दिन दोय छबीला, जिसा काच का सीसा। यो तन मोती ओस का, तुम क्युं न भजो जगदीसा। -(उदोजी अड़ींग)-भावार्थ-‘ यह शरीर कांच के शीशे की तरह नाजुक और ओस की बूंद की क्षणभंगुर…

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जाम्भाणी संत सूक्ति

” तुंही सांम सधीर,धर अंबर जण धरियो।तरे नाम गजराज,ध्रुव पहळाद उधरियो।परीखत अमरीख पर,भगतां पर पाळे।संखासर संघार,वेद तैं ब्रह्मा वाळे।सुर परमोधण तारण संतां,वरण तूझ अवरण वरूं।उबारियो अलू आयो सरण,जै ओं देव झांभेसरूं।-(अल्लूजी कविया) भावार्थ ‘ धरती और आकाश को धारण करने…

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