अमावस्या व्रत कथा
सर्वप्रथम गुरूदेव की वन्दना करता हूं, क्योंकि गोविन्द से भी गुरू महान है। गुरू को प्रणाम करने के पश्चात् सभी सन्तों को प्रणाम करता हूं। तत्पश्चात् विष्णु परमात्मा को नमन करता हूं, क्योंकि विष्णु को प्रणाम करने से व्याधि शारीरिक…
Protectors of nature, guardians of life.
Protectors of nature, guardians of life.
सर्वप्रथम गुरूदेव की वन्दना करता हूं, क्योंकि गोविन्द से भी गुरू महान है। गुरू को प्रणाम करने के पश्चात् सभी सन्तों को प्रणाम करता हूं। तत्पश्चात् विष्णु परमात्मा को नमन करता हूं, क्योंकि विष्णु को प्रणाम करने से व्याधि शारीरिक…
सूर्यदेव की दो भुजाएँ हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान रहते है ; उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित हैं। उनके सिर पर सुन्दर स्वर्ण मुकुट तथा गले में रत्नों की माला है। उनकी कान्ति कमल के भीतरी भाग…
चन्द्रदेव का वर्ण गौर है। इनके वस्त्र, अश्व और रथ तीनों श्वेत हैं। ये सुन्दर रथ पर कमल के आसन पर विराजमान हैं। इनके सिर पर सुन्दर स्वर्ण मुकुट तथा गले में मोतियों की माला है। इनके एक हाथ में…
मंगल देवता की चार भुजाएँ हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं। इनके हाथों में क्रम से अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है। इन्होंने लाल मालाएँ और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिरपर स्वर्ण मुकुट है तथा ये…
बुध पीले रंग की पुष्पमाला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की कान्ति कनेर के पुष्प की जैसी है। वे अपने चारों हाथों में क्रमशः – तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा धारण किये रहते हैं। वे अपने सिर…
देव गुरू बृहस्पति पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुन्दर माला है। वे पीत वस्त्र धारण करते हैं तथा कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में क्रमशः – दण्ड, रूद्राक्ष की…
दैत्यों के गुरू शुक्र का वर्ण श्वेत है। उनके सिर पर सुन्दर मुकुट तथा गले में माला है। वे श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में क्रमशः-दण्ड, रूद्राक्ष की माला, पात्र तथा वरदमुद्रा सुशोभित रहती हैं।…
शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। ये गीध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमशः धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते…
यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने अखंड सौभाग्य (सुहाग), पति के स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना के लिए किया जाता है। जो सुहागिन स्त्री प्रातःकाल से ही निर्जला व्रत रहकर संध्याकाल में इस कथा को श्रवण करती है, रात्रि…