Sanjeev Moga

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शब्द नं 96

सुंण गुणवंता,सुंण बुधवंता एक बार गोपीचंद,भरथरी और गोरखनाथ समराथल धोरे पर आये और गुरु जंभेश्वर महाराज से सांकेतिक भाषा में पूछा कि वे कौन पुरुष है?उनका ठिकाना क्या है?उनके गुरु कौन हैं? किस उद्देश्य से मानव देह धारण कि है? गुरु महाराज उनके प्रश्नों एवं छिपे व्यंग को जानकर प्रथम तो मन ही मन हँसे और उसके बाद उन्हें यह शब्द कहा:- सुण गुणवतां सूण बुधवंता मेरी उत्पति आद लुहारूं हे गुणवान ! हे बुद्धिमान! सुनो मैं सृष्टि का सृजन…

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शब्द नं 97

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी एक समय गंगा पार के विश्नोई गुरु जंभेश्वर के पास समराथल आ रहे थे। उन्होंने रोटू के पास मांगलोद गांव के किनारे एक सरोवर के पास विश्राम किया। वहीं एक माता जी का प्रसिद्ध मंदिर था। मंदिर का पुजारी ऊदा नामक एक प्रसिद्ध देवी भक्त था। देवी उसके मुख बोलती थी। ऊदे ने बिश्नोईयों से कहा कि वे समराथल जाकर क्या लायेंगे? उनकी मनोकामना तो देवी ही पूर्ण कर देगी।बिश्नोईयों ने कहाकि वे…

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शब्द नं 98

जिंहि गुरु के खिण ही ताऊ-खिंण ही सीऊ एक समय समराथल धोरे पर जमाती भक्तजनों ने गुरु जंभेश्वर महाराज से संसार एवं प्रकृति की परिवर्तन शीलता के विषय में जानना चाहा कि वह कौन सी शक्ति है जो क्षण भर में कुछ का कुछ कर देती है? भक्त जनों की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:- जिहिं गुरु कै खिंण ही ताऊं खिंण ही सीऊं हे जिज्ञासु जन! उस परमपिता परमेश्वर सतगुरु की महिमा अपार हैं।उसकी इच्छा मात्र…

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शब्द नं 99

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 साच सही म्हे कूड न कहिबा पूर्व प्रसंग में कहे हुए शब्द को सुनकर जमाती लोगों ने कहा कि इस प्रकार की रहस्य भरी योग की बातें वे क्या जाने तथा उन्होंने गुरु जंभेश्वर महाराज से दान देने के विषय में भी जानना चाहा। गुरु महाराज ने दान दाताओं द्वारा सांसारिक बडाई के लिए दिए गये दान को व्यर्थ बताया तथा हरि हित के लिए दिये गये दान का महत्व प्रतिपादित किया एवं यह शब्द कहा:- साथ सही म्हे…

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शब्द नं 100

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 अरथूं गरथूं साहंण थाटूं एक समय समराथल पर संत मंडली में दान देने विषयक चर्चा चल रही थी,उसी समय एक राजा ने जिज्ञासा प्रकट की कि जो कोई धन-दौलत, हाथी घोड़ों का नित्य दान करता है, उसकी क्या गति होती है?राजा की जिज्ञासा जान श्री गुरु जंभेश्वर महाराज ने यह शब्द कहा:- अरथूं गरयूं साहंण थाटूं कुड़ा दीठो ना ठाटो कुड़ी माया जाल न भूली रे राजेन्द्र अलगी रही ओजूं की बाटो हे राजन! यह सासारिक धन- दौलत, घोड़ों…

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शब्द नं 101

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 नित ही मावस नित ही संकरांत पूर्व शब्द के प्रसंगानुसार समराथल धोरे पर संत मंडली में दान देने के समय एवं पात्र के बारे में चर्चा चल रही थी।उसी चर्चा के दौरान एक ब्राह्मण ने अपना मत प्रकट किया की अमावस्या के दिन जब नवग्रह एक स्थान पर हो। तब किसी तीर्थ स्थान पर दिया हुआ दान फलीभूत होता है। संत मंडली के ही कुछ लोगों ने श्री जंभेश्वर महाराज से दान के समय एवं स्थान के विषय में…

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