

जाम्भाणी संत सूक्ति
” साध कहै कांनै सुंणौ, अन्तर की अरदास। महे मंडल्य मारै कंवण, परमेसर मो पास। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ सच्चा साधक जब अनन्य भाव से आर्त होकर प्रार्थना करता है तो परमात्मा उसकी पुकार को सुनकर उसे अपना संरक्षण प्रदान करता है।जगत में कोई उसे कष्ट देने का साहस नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास परमात्मा है। (जम्भदास)