शब्द नं 110
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 मथुरा नगर की रानी होती जिस समय फलोदी के पास जाम्भोलाव तालाब का खनन हो रहा था,उस समय जमातीजनों ने एक गधी को दिखाकर गुरु जंभेश्वर महाराज से जानना चाहा कि इसने पूर्व जन्म में ऐसे क्या पाप कर्म किए थे कि इस जन्म में इसे गधी का जन्म मिला और इसके पीठ पर घाव है। उससे मवाद, खून बहता रहता है। दिन भर यह इसी घाव वाली पीठ पर ढाँची द्वारा पानी ढो रही है। पिठ से ढाँची…
शब्द नं 111
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 खरड़ ओढीजै तूंबा जीमीजै एक बार चित्तौड़ की झाली रानी गुरु जंभेश्वर महाराज के दर्शनार्थ,चित्तौड़ से समराथल, खींदासर,जैसलां,झीझाले, भीयासर आदि प्रमुख साथरियों में होती हुई जाम्भोलाव तालाब पर पहुँची। वहाँ गुरु जंभेश्वर महाराज उस समय विराजमान थे।झाली रानी ने गुरु महाराज के दर्शन किये तथा वह आठ दिनों तक अनेक धार्मिक अनुष्ठान किए।जब जाम्भोलाव तालाब से वापिस चितौड़ जाने को प्रस्थान करने लगी,तब रानी ने गुरु महाराज से प्रश्न किया कि आप ने रामावतार में अयोध्या में जो सुख…
धोरा री धरती में जांभोजी पधारिया
Read Moreधोरा री धरती में जांभोजी पधारियापानीड़ों-बरसा-दो-,-म्हारा-जाम्भोजी
Read Moreपानीड़ों-बरसा-दो-,-म्हारा-जाम्भोजीशब्द नं 112
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 जके पंथ का भाजणां मलेर कोटले का सेख- सदूखान नित्य सौ गायें मरवाता था।गुरु जंभेश्वर महाराज ने उस कुकृत्य को बंद करवाने के लिए अपने भक्त बाजेजी को मलेर कोटला भेजा। गुरु महाराज की मंत्र शक्ति के बल से बाजेजी ने जिस सूखे बाग में आसन लगाया,वह बाग हरा भरा हो गया। गायों की गर्दन पर कसाईयों की छुरी नहीं चली। देग का पानी गर्म नहीं हुआ।आग ठंडी हो गई। जब शेख को इन बातों का पता लगा तो…
सबद — 113
“दोहा” मुला सधारी यूं कहै, महंमद ही फुरमान। रोजे रखे निवाज पढ़े, बंदगी करै साहब तेहि मान सबद 112 को सुनकर मुल्ला कहने लगा — आप ऐसी बातें क्यों कहते हैं जिससे हमको दुःख होता हैं हम तो मुहम्मद साहब का फरमान स्वीकार करते हैं। रोजे रखते हैं नबाज पढ़ते हैं ऐसी हमारी बंदगी जरूर स्वीकार होगी हम लोग नर्क में कैसे गिर सकते हैं तब भगवान जांभोजी ने सबद 113 सुनाया सबद — 113 ईमा मोमण चीमा गोयम, महंमद…
शब्द नं 114
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 सुर नर तणौ संदेशों आयौ एक समय समराथल धोरे पर श्री जंभेश्वर महाराज के पास सेखा जाट और उसके कई साथी आये। उन्होंने गुरु महाराज की वंदना करने के पश्चात कहा कि ये जंगल में रहने वाले भोले-भाले किसान है।धर्म, क्रिया कर्म आदि के बारे में कुछ नहीं जानते। गुरु महाराज ने कोई ऐसा उपदेश दे, ताकि इस जीवन में उनका कल्याण हो सके। जाटों की जिज्ञासा जान,गुरु महाराज ने उन्हें यह शब्द कहा:- सुरनर तणो संनेसो आयो सांभलीयो…
शब्द नं 115
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 म्हे आप गरीबी तन गूदडियो एक समय एक नाथपंथी जोगी श्री जंभेश्वर महाराज के पास आया और उनके सीधे-सादे पहनावे और अति शांत स्वरूप को देखा तो,उसने हाथ जोड़कर कहा कि आप अवतारी पुरुष होकर भी इस प्रकार की साधारण गुदडी धारण किए हुए बिना किसी आसन के भूमि पर क्यों बैठे हैं?यदि आप योगियों के योगी हैं तो इतने कृश-काय क्यों है?उस योगी के प्रश्न सुन गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- म्हे आप गरीबी तन गुदडियो…
शब्द नं 116
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 आयसां मृगछाला पावोडी कायं फिरावो एक समय बहुत से नाथ योगी मृगीनाथ के नेतृत्व में गुरू जंभेश्वर महाराज के पास समराथल पर उनकी परीक्षा करने आये।मृगीनाथ ने अपने तंत्र- बल के आधार पर मृग छाला और पावोड़ी को ऊपर आकाश में हवा में नचाना आरंभ किया और अभिमान में भरकर कहा कि उसके सम्मान कोई और सिद्धि पुरूष एवं चमत्कारी नहीं है। उसने चुनौती के स्वर में जांभोजी महाराज से कहाकि यदि उनमें कोई शक्ति या चमत्कार हो तो…
शब्द नं 117
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 टुका पाया मगर मचाया कनफाडे़ नाथपंथी जोगियों की जमात को जब श्री जंभेश्वर महाराज ने योग सिद्धि के चमत्कार दिखाना, योग का उद्देश्य न बतलाकर पेट पालने का पाखंड और बाजीगरी बतलाया, तब मृगीनाथ ने पुनः कहाकि वे कोई चलते-फिरते तमाशबीन नहीं है। उन्होंने भी अपने गुरु से योग की शिक्षा पाई है।वे भी सच्चे योगी हैं। उनकी गुरु दीक्षा की बात सुन गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- टुका पाया मगर मचाया ज्युं हंडिया का कुता हे…
शब्द नं 118
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 सुरगां हूंता स्वयंभू आयौ पूर्व जन्म का एक तपस्वी कारणवश पुनः मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुआ। उसे अपने पूर्व जन्म में घटित वह घटना याद रही, जिसके कारण उसे पुनः जन्म धारण करना पड़ा। अतः वह जन्म से ही मौन रहा। कभी किसी से कुछ नहीं बोला।जब वह दस बारह वर्ष का हो गया और बोला नहीं तो उसकी मां को बड़ी चिंता हुई।ऐसा सुंदर सुशील,समझदार पुत्र पाकर भी जब वह कुछ नहीं बोले, हर समय मौन रहे…
शब्द नं 119
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 विसन विसन तू भण रे प्राणी एक समय संत ऊदे, अतली ने गुरु महाराज से यह जिज्ञासा प्रकट की कि उनके अपने शरीर पर पूर्व जन्मों में किए हुए पापों का जो इतना अधिक भार है वह कैसे उतरेगा? उनके पापों की संख्या इतनी है,जितनें शरीर पर बाल।उनके इतने सारे पाप कैसे दूर होंगे तथा उनकी मुक्ति कैसे होगी? अपने भक्त ऊदे और अतली की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उने यह शब्द कहा:- विसन विसन तूं भण रे…