

शब्द नं 117
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 टुका पाया मगर मचाया कनफाडे़ नाथपंथी जोगियों की जमात को जब श्री जंभेश्वर महाराज ने योग सिद्धि के चमत्कार दिखाना, योग का उद्देश्य न बतलाकर पेट पालने का पाखंड और बाजीगरी बतलाया, तब मृगीनाथ ने पुनः कहाकि वे कोई चलते-फिरते तमाशबीन नहीं है। उन्होंने भी अपने गुरु से योग की शिक्षा पाई है।वे भी सच्चे योगी हैं। उनकी गुरु दीक्षा की बात सुन गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- टुका पाया मगर मचाया ज्युं हंडिया का कुता हे…

शब्द नं 118
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 सुरगां हूंता स्वयंभू आयौ पूर्व जन्म का एक तपस्वी कारणवश पुनः मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुआ। उसे अपने पूर्व जन्म में घटित वह घटना याद रही, जिसके कारण उसे पुनः जन्म धारण करना पड़ा। अतः वह जन्म से ही मौन रहा। कभी किसी से कुछ नहीं बोला।जब वह दस बारह वर्ष का हो गया और बोला नहीं तो उसकी मां को बड़ी चिंता हुई।ऐसा सुंदर सुशील,समझदार पुत्र पाकर भी जब वह कुछ नहीं बोले, हर समय मौन रहे…

शब्द नं 119
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 विसन विसन तू भण रे प्राणी एक समय संत ऊदे, अतली ने गुरु महाराज से यह जिज्ञासा प्रकट की कि उनके अपने शरीर पर पूर्व जन्मों में किए हुए पापों का जो इतना अधिक भार है वह कैसे उतरेगा? उनके पापों की संख्या इतनी है,जितनें शरीर पर बाल।उनके इतने सारे पाप कैसे दूर होंगे तथा उनकी मुक्ति कैसे होगी? अपने भक्त ऊदे और अतली की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उने यह शब्द कहा:- विसन विसन तूं भण रे…

शब्द नं 120
विसन विसन तूं भण रे प्राणी इस जीवन के हावै रत्ना राहड नाम का व्यक्ति गाँव जाँगलू का रहने वाला था। उसने अपना जीवन अतिथियों एवं साधु संतों की सेवा में लगा रखा था। एक बार वह गुरु जंभेश्वर के सम्मुख उपस्थित हुआ। उसने यह जिज्ञासा प्रकट की कि वह ज्ञान,दान एवं भक्ति में किसका अधिकारी है ?उसे क्या करना चाहिए ताकि वह बैकुंठ धाम को पा सके।रत्ने की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- विसन विसन…