जाम्भाणी संत सूक्ति
” पारब्रह्म से सुं हुइ पिछाण्य, निरभै होय भेंट निरवाण। पाठ पढूं परसण होय पीव, आवागवण न आवै जीव। -(केसोजी) -भावार्थ-‘साधक को जब परमतत्व की पहचान हो जाती है तो वह मुक्ति प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है।उसे परमात्मा के अलावा किसी दूसरे तत्व को जानने की इच्छा नहीं रहती,उसका प्रत्येक कर्म अत्यंत पवित्र होता जिससे परमात्मा प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और जीव का आवागमन मिट जाता है। -(जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
” साध कहै कांनै सुंणौ, अन्तर की अरदास। महे मंडल्य मारै कंवण, परमेसर मो पास। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ सच्चा साधक जब अनन्य भाव से आर्त होकर प्रार्थना करता है तो परमात्मा उसकी पुकार को सुनकर उसे अपना संरक्षण प्रदान करता है।जगत में कोई उसे कष्ट देने का साहस नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास परमात्मा है। (जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
” डूंगरिया रा बादला, ओछा तणां सनेह। बहता बहै उतावला, अंत दिखावै छेह। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ छोटी पहाड़ी पर दिखाई देने वाला बादल और घटिया आदमी द्वारा प्रदर्शित प्रेम क्षणिक होता है, कब गायब हो जाए पता ही नहीं चलता। (जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह योग्य, बुद्धिमान, सुंदर और स्वजातीय हो। 🙏-(जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
” ओट जीसी कायर की रह, सबल सेय सुवो फल लह। रीझ नांह करकसा नारी, पाथर नाव पोहंचिया पारि। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ कायर की शरण लेना व्यर्थ है क्योंकि वह आपकी रक्षा नहीं कर सकता।सेमल के सुंदर फल को चौंच मारने पर तोते को निराश ही होना पड़ता है क्योंकि उसके अंदर से रुई निकलती है। कठोर वचन बोलने वाली स्त्री को कितना ही रिझा लो वह मधुर नहीं बोलेगी।पत्थर की नाव पर बैठकर नदी पार नहीं की जा सकती। 🙏-(जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
” मन मोती अरु दूध का, ज्यां कां यही सुभाव। फाट्यां पीछे ना मिले, क्रोड़न जतन कराव। अगनी दाह मां पालवे, कर ही पालण तेल। वचन दग्ध ज्यां कां हिया, हिरदै पड़ गया छेल। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ मन,मोती और दूध एक बार फटने पर करोड़ उपाय करने पर भी दोबारा अपने उसी स्वरूप में नहीं आते। इसलिए सावचेत रहें, अग्नि से जली हुई बाहर की चमड़ी औषधि लगाने से ठीक हो जाती है परन्तु कटु वचनों से जलाए हुए हृदय के…
जाम्भाणी संत सूक्ति
” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह योग्य, बुद्धिमान, सुंदर और स्वजातीय हो। 🙏-(जम्भदास)
जाम्भाणी संत सूक्ति
🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸 ” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह योग्य, बुद्धिमान, सुंदर और स्वजातीय हो। 🙏-(जम्भदास)
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जाम्भाणी संत सूक्ति
🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸 ” मान सरोवर हंसा देख्या, काग नजर नहीं आवै। सागर नागर शीर पड़यो जब, नाडूल्यां कुण न्हावै। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ समुद्र के सम्पर्क में आने वाले को छोटे तालाब से कोई मतलब नहीं रहता,उसी तरह जिनको परमात्मा से प्रेम हो जाता है उन्हें संसार फीका लगने लगता है, परन्तु ऐसी स्थिति किसी विरले को ही प्राप्त होती है क्योंकि मानसरोवर पर हंस ही निवास कर सकते हैं कौए की वहां तक पहुंच नहीं होती। 🙏-(जम्भदास)
आज की शब्दवाणी सूक्ति
छव दरसण जिंहि कै रूपण थापण, संसार बरतण निजकर थरप्या। -छः दर्शन उसी ;परमात्माद्ध के रूप का वर्णन कर रहे हैं, जिसने अपने हाथों से संसार की रचना की है।
पीपासर नगरी एवं मन्दिर की विशेष कविता
कभी पीपासर आई बहार थी, है कथा जम्भगुरु अवतार कीकभी पीपासर आई बहार थी,है कथा जम्भगुरु अवतार की ।।मर्म सब पीपासर के अन्दर है,वहाँ श्री जम्भगुरु का मन्दिर है ।।मरुभूमि को हम सबने निहारा है,श्री गुरु अवतार सबसे न्यारा है ।।बात बहुत है हर्ष-डत्कर्ष की,मनाते जन्माष्टमी हर वर्ष की ।।जन्माष्टमी पर यात्री अब आते हैं,देख उत्सव नजारे बहुत आते हैं ।।जहाँ भक्ता ें आ शीश झुकाया हैं,सबने आशीर्वाद गुरु का पाया हैं ।।रखा कमण्डल वहाँ गुरु की धरोहर है,है लोहट…