
जाम्भाणी संत सूक्ति
” मन मोती अरु दूध का, ज्यां कां यही सुभाव। फाट्यां पीछे ना मिले, क्रोड़न जतन कराव। अगनी दाह मां पालवे, कर ही पालण तेल। वचन दग्ध ज्यां कां हिया, हिरदै पड़ गया छेल। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ मन,मोती और दूध एक बार फटने पर करोड़ उपाय करने पर भी दोबारा अपने उसी स्वरूप में नहीं आते। इसलिए सावचेत रहें, अग्नि से जली हुई बाहर की चमड़ी औषधि लगाने से ठीक हो जाती है परन्तु कटु वचनों से जलाए हुए हृदय के…

जाम्भाणी संत सूक्ति
” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह योग्य, बुद्धिमान, सुंदर और स्वजातीय हो। 🙏-(जम्भदास)

जाम्भाणी संत सूक्ति
🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸 ” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह योग्य, बुद्धिमान, सुंदर और स्वजातीय हो। 🙏-(जम्भदास)


जाम्भाणी संत सूक्ति
🌸 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌸 ” मान सरोवर हंसा देख्या, काग नजर नहीं आवै। सागर नागर शीर पड़यो जब, नाडूल्यां कुण न्हावै। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ समुद्र के सम्पर्क में आने वाले को छोटे तालाब से कोई मतलब नहीं रहता,उसी तरह जिनको परमात्मा से प्रेम हो जाता है उन्हें संसार फीका लगने लगता है, परन्तु ऐसी स्थिति किसी विरले को ही प्राप्त होती है क्योंकि मानसरोवर पर हंस ही निवास कर सकते हैं कौए की वहां तक पहुंच नहीं होती। 🙏-(जम्भदास)

आज की शब्दवाणी सूक्ति
छव दरसण जिंहि कै रूपण थापण, संसार बरतण निजकर थरप्या। -छः दर्शन उसी ;परमात्माद्ध के रूप का वर्णन कर रहे हैं, जिसने अपने हाथों से संसार की रचना की है।

पीपासर नगरी एवं मन्दिर की विशेष कविता
कभी पीपासर आई बहार थी, है कथा जम्भगुरु अवतार कीकभी पीपासर आई बहार थी,है कथा जम्भगुरु अवतार की ।।मर्म सब पीपासर के अन्दर है,वहाँ श्री जम्भगुरु का मन्दिर है ।।मरुभूमि को हम सबने निहारा है,श्री गुरु अवतार सबसे न्यारा है ।।बात बहुत है हर्ष-डत्कर्ष की,मनाते जन्माष्टमी हर वर्ष की ।।जन्माष्टमी पर यात्री अब आते हैं,देख उत्सव नजारे बहुत आते हैं ।।जहाँ भक्ता ें आ शीश झुकाया हैं,सबने आशीर्वाद गुरु का पाया हैं ।।रखा कमण्डल वहाँ गुरु की धरोहर है,है लोहट…

श्री संतं वील्हा जी कृत बतीस आखड़ी़ छन्द
सेरा उठै सुजीव, छाण जल लीजिये।दांतण कर करे सिनान, जिवाणी जल कीजिये।।1।।बैस इकायंत ध्यान, नाम हरि पीजिये?रवि उगे तेही बार, चरण सिर दीजिये।।2।।गऊ घृत लेवे छाण, होम नित ही करो।पंखे से अग्न जगाय, फूंक देता डरो।।3।।सूतक पातक टाल, छाण जल पीजिये।कर आत्म को ध्यान, आरती कीजिये।।4।।मुख बोली जै साच, झूठ नहीं भाखिये।नेम झूठ सूं जाय, जीभ बस राखिये।।5।।निज प्रसुवा गाय, चूंगती देखिये।मुखां बताइये नांही, और दिस पेखिये।।6।।अमावस व्रत राख, खाट नहीं सोईये।चोरी जारी त्याग, कुदृष्ट न जोईये।।7।।नेम धर्म गुरू कहे,…

आरती कीजे श्री महाविष्णु देवा
आरती कीजे श्री महाविष्णु देवा,सुरनर मुनिजन करे सब सेवा।।पहली आरती शेष पर लोटे, श्री लक्ष्मी जी चरण पलोटे।।दूसरी आरती क्षीर समुद्र ध्यावे, नाभ कमल ब्रह्मा उपजाए।।तीसरी आरती विराट अखण्डा, जाके रोम कोटि ब्रह्मण्डा।।चैथी आरती वैकुण्ठे विलासी, काल अंगूठ सदा अविनाशी।।पांचवीं आरती घट-घट वासा,हरि गुण गावे ऊधौ जी दासा।।

आरती कीजे श्री जम्भ तुम्हारी
आरती कीजे श्री जम्भ तुम्हारी,चरण शरण मोही राखो मुरारीपहली आरती उनमुन कीजे, मन बच कर्म चरण चित दीजे।।दूसरी आरती अनहद बाजा, श्रवणे सुना प्रभु शब्द अवाजा।।तीसरी आरती कंठसुर गावे, नवध्या भक्ति प्रभु प्रेम रस पावे।चैथी आरती हिरदै में पूजा, आत्मदेव प्रभु और न दूजा।।पांचवीं आरती प्रेम प्रकाशा, कहत ऊधो साधोचरण निवासा।।

आरती कीजे गुरू जम्भ जती की
आरती कीजे गुरू जम्भ जती की,भगत उधारण प्राण पति कीपहली आरती लोहट घर आये,बिन बादल प्रभु इमिया झुराए।दूसरी आरती पींपासर आये, दूदा जी नें प्रभु परचो दिखाए।तीसरी आरती समराथल आए, पूला जी नें प्रभु स्वर्ग दिखाए।चैथी आरती अनूवे निवाए, बहुत लोग प्रभु पवित्र कहाए।पांचवीं आरती ऊधो जन गावे, सो गावे अमरापुर पावे।

कूं कूं केरा चरण पधारो गुरू जम्भदेव, साधु जो भक्त थारी आरती करे।
कूं कूं केरा चरण पधारो गुरू जम्भदेव, साधु जो भक्त थारी आरती करे। जम्भ गुरू ध्यावे सो सर्व सिद्धि पावे, सन्तों क्रोड़ जन्म केरा पाप झरे। हृदय जो हवेली मांही रहो प्रभु रात दिन, मोतियन की प्रभु माला जो गले। कर में कमण्डल शीश पर टोपी नयना मानों दोय मसाल सी जरे। कूं कूं केरा चरण पधारो गुरू जम्भदेव…………………। सोनेरो सिंहासन प्रभु रेशम केरी गदियां, फूलांहांदी सेज प्रभु बैस्यां ही सरै। प्रेम रा पियाला थानें पावे थारा साधु जन,मुकुट छत्र…



