जाम्भाणी संत सूक्ति

“एक लख पूत सवा लख नातियां, दस बंधु सिरताज। एक सीता के कारणै, गयो रावण को राज। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ लाखों सदस्यों के परिवार वाले महाबली दशानन रावण का राज्य और लंका का विपुल ऐश्वर्य एक परस्त्री के अपहरण के कारण धूल में मिल गया।’ 🙏 -(जम्भदास)

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शब्द 78

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *नवै पाल,नवै दरवाजा* श्री बालनाथ जोगी ने गुरु जंभेश्वर से योग साधना एवं उसके प्रभाव के विषय में जानना चाहा।जोगी की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- *नवै पोल नवै दरवाजा अहुंठ कोड़रू* *रायजड़ी* हे मन रूपी माली!तुम्हारा यह शरीर रूपी बगीचा, जिस के नव तोरण द्वार आँख,कान,नाक, मुँह, मल-मुत्र द्वार आदि नव बड़े-बड़े दरवाजे लगे हुए हैं तथा साढे तीन करोड़ रोमावलियाँ जिस देह बाडी पर जडी हुई है। *कांय रे सीचों वनमाली इहिं वाड़ी…

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“सत सीतां जत लखमंणां, सबळाई हंणवंत। जे आ सीत न जावही, अै गुंण मांहि गळंत।। -(मेहोजी गोदारा थापन) -भावार्थ-‘सीता का हरण होने पर ही उनके सतीत्व,लक्ष्मण के जतीपने और हनुमान के बल-पराक्रम का संसार को पता चला अन्यथा तो ये गुण छुपे ही रह जाते। आपत्तिकाल में ही मनुष्य के सुषुप्त गुण प्रकट होते हैं। 🙏 -(जम्भदास)

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शब्द 79

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *बारा पोल-नवै दरसाजी* श्री बालनाथ योगी ने पुनः गुरु जांभोजी से कहा कि योग साधना से जोगी की उम्र बढ़ती है और निर्वाण प्राप्त होता है तथा इस बात की पुष्टि मार्कंडेय पुराण से होती है।जिसने प्राणायाम द्वारा साँस को जीत लिया उसकी उम्र अपार हो जाती है।बालनाथ का कथन जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- *बारा पोल नवै दंरसाजी राय अथर गढ़ थीरूं* यह स्थूल शरीर एक गढ़ हैं। जिसके आँखें, कान, नाक, मुंह, मल- मूत्र…

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“मरते पावै पीव कूं, जीवंत वंचै काल। नीरभै हरि नाम ले, दोनों हाथ दयाल। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ भगवान का नाम जीव के लोक और परलोक दोनों संवारता है, जीवित रहते संकटों से रक्षा करता है और मरने के बाद भगवान से मिलाता है।’ (जम्भदास)

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जाम्भाणी संत सूक्ति

” कै हरि की चरचा कर, कै हरि हिरदै नाम। प्रीतम पल न वीसारिया, चलता करता काम। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ उत्तम संग मिले तो व्यक्ति भगवदचर्चा करे अथवा तो एकान्त में भगवद् स्मरण करे। अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कर्म अवश्य करे,पर भगवान एक पल के लिए भी विस्मृत नहीं होना चाहिए।’ 🙏 -(जम्भदास)

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“बाल तरण अर व्रधपणा, हेत करे हरि ध्याय। जब लग सांस सरीर मां, हरख्य हरख्य गुण गाय। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ जब तक इस नश्वर शरीर में श्वास चल रही है, बाल, युवा या वृद्ध कोई भी अवस्था हो प्रेम पूर्वक भगवान का स्मरण करना चाहिए।(क्योंकि मृत्यु अवस्था नहीं देखती)।’ 🙏 -(जम्भदास)

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“मान बड़ाई तेज धन, तन जाव शरम लाज। भगति मुगति अर ग्यान ध्यान, एते नै जावै भाज। नर नारी कारण नहीं, जांकै अंतरि काम। कामी कदै न हरि भजै, निसदिन आठोंजाम। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ मान-सम्मान,तेज,धन,तन, लज्जा, भक्तिभावना, मुक्तिकामना, ज्ञान, ध्यान सब भाग जाते हैं जब जीव काम के वशीभूत हो जाता है।कामी कभी भगवान का भजन नहीं कर सकता। 🙏 – ( जम्भदास) Photo Designed by Mayank Bishnoi

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“तां मेली करतार, जहां धरम का नहीं धोखा। तां मेली करतार, साध मोमण दिल चोखा। सती संतोषी सीलवंत, सद पूछै पर वेदना। विसन भगत उदो कह, तां मेली मदसूदना। -(उदोजी नैण) -भावार्थ-‘ जहां धर्म के नाम पर धोखा नहीं है, जहां शुद्ध अन्तःकरण वाले साधक, उज्जवल चरित्र की स्त्रियां, संतोषी,शीलवान लोग निवास करते हैं। आत्मीयतापूर्ण लोग जहां परपीड़ा निवारण के लिए तत्पर रहते हैं।हे भगवान! मुझे ऐसे स्थान पर वास देना।’ (जम्भदास)

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जाम्भाणी संत सूक्ति

“पुत्र विना नहीं वंस, नहीं तया विन गेह। नीत विनां नहीं राज, प्राण विना नहीं देह। धीरज विना नहीं ध्यान, भाव विन भगति न होय, गुरु विना नहीं ज्ञान, जोग विन जुगति न कोय। संतोष विना कहूं सुख नहीं, कोट उपाय कर देखो किना। विसन भगत उधो कहै, मुक्ति नहीं हरि नाम विना। -(उदोजी नैण) -भावार्थ-‘ पुत्र के बिना वंश, स्त्री के बिना घर, नीति के बिना राज,प्राण के बिना शरीर, धैर्य के बिना ध्यान,भाव के बिना भक्ति, गुरु के…

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जाम्भाणी संत सूक्ति

” लाय बुझावण नै मन हुवो, तदे घर जल खैणावै कुवो। उत में लोग हंसै जग जोय, घर जलता कुवो कदि होय। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ समय बितने पर किया गया कार्य उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे कोई घर में लगी आग बुझाने के लिए कुआं खोदने का उपक्रम करे,यह स्वयं की हानि और जगत में उपहास का कारण बनता है। (जम्भदास)

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 जाम्भाणी संत सूक्ति 

” पारब्रह्म से सुं हुइ पिछाण्य, निरभै होय भेंट निरवाण। पाठ पढूं परसण होय पीव, आवागवण न आवै जीव। -(केसोजी) -भावार्थ-‘साधक को जब परमतत्व की पहचान हो जाती है तो वह मुक्ति प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है।उसे परमात्मा के अलावा किसी दूसरे तत्व को जानने की इच्छा नहीं रहती,उसका प्रत्येक कर्म अत्यंत पवित्र होता जिससे परमात्मा प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और जीव का आवागमन मिट जाता है। -(जम्भदास)

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