शब्द – 9 :: ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो

ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो। भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल शुद्ध सात्विक विकार रहित है तो तुम्हारे काबे का हजा नजदीक ही है अर्थात् हृदय ही तुम्हारा काबै का हज है तो फिर क्यों मकानों की दिवारों पर चढ़कर ऊंची आवाज से उस अल्ला की पुकार करते हो, , यह तुम्हारी बेहूदी उलबंग तुम्हारा अल्ला नहीं सुन सकेगा क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है। भाई नाऊ बलद पियारो, ताकै गलै करद क्यूं सारों। अपने…

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सबद-10 ::ओ३म् विसमिल्ला रहमान रहीम, जिहिं कै सदकै भीना भीन।

ओ३म् विसमिल्ला रहमान रहीम, जिहिं कै सदकै भीना भीन।  भावार्थ- विसमिल्ला तो रहम-दया भाव रखने वाले स्वयं विष्णु अवतारी राम ही है। उनका मार्ग तो तुम्हारे से भिन्न ही था। वर्तमान में तुमने जो जीव हत्या का मार्ग अपना रखा है यह तुम्हारा मनमुखी है। उनको बदनाम मत करो। तो भेटिलो रहमान रहीम, करीम काया दिल करणी। सभी पर रहम करने वाले श्री राम एवं गोपालक श्री कृष्ण को दिल रूपी हृदय गुहा में स्थिर करके फिर कोई शुभ कार्य…

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शब्द – 11 : ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो

ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो। भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल में सच्चाई है तो काबे की हज निकट ही है। जब तुम्हारा अपना अन्तःकरण नजदीक ही है तो फिर उसे दूर समझकर इतनी जोर से आवाज क्यों लगाते हो क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है। सीने सरवर करो बंदगी, हक्क निवाज गुजारो। उस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति करना चाहते हो तो हृदय में प्रेम और दीनता से पुकार करो यही सच्ची प्रार्थना होगी। प्रतिदिन…

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सबद-12 : ओ३म् महमद महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारूं।

‘दोहा‘‘ ‘फिर यो काजी बोलियो, फरमाई यह मुहमद। जम्भगुरु तब यों कही, इसका सुणियो सबद।’  फिर वह काजी कहने लगा-हे देव! यह जीव हत्या करना तो मुहमद साहब ने हम लोगों को बतलाया है, , तब जम्भेश्वर जी ने सबद उच्चारण किया। :: सबद-12 :: ओ३म् महमद महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारूं। भावार्थ- अपने कुकर्मों पर परदा डालने के लिये हे काजी! तूं मुहमद का नाम बार-बार मत ले। तुम्हारे विचारों,कर्तव्यों से मुहम्मद का कोई मेल…

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सबद-13 :: ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं।

ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं। भावार्थ- रे मूर्ख! तुमने इस अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ में ही व्यतीत क्यों कर दिया। यह तुम्हारे हाथ से निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आयेगा। इस संसार में रहकर भी तुमने चोरी , जारी,निंदा,झूठ आदि पापों की पोटली ही बांधी है। जब इस संसार में आया था तो काफी हल्का था,निष्पाप था। किन्तु यहां आकर इन पापों की पोटली से स्वयं ही बोझ से दब रहा है…

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सबद-14 : ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत भेदूं, शास्त्रे पुस्तके लिखणा न जाई। मेरा शब्द खोजो, ज्यूं शब्दे शब्द समाई।

दोहा‘‘ फेर जाट यों बोलियो, जाम्भेजी सूं भेव। वेद तंणां भेद बताय द्यो, ज्यों मिटै सर्व ही खेद। तेहरवां शब्द श्रवण करके फिर वह जाट कहने लगा कि हे देव! वेदों के बारे में मैने बहुत ही महिमा सुनी है। इसका भेद आप मुझे बतला दीजिये। जिससे मेरा संशय निवृत हो सके। श्री देवजी ने उसके प्रति यह दूसरा शब्द सुनाया- √√ सबद-14 √√ ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत भेदूं, शास्त्रे पुस्तके लिखणा न जाई। मेरा शब्द खोजो, ज्यूं…

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सबद-15 ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं।

‘‘दोहा‘‘ जाट कहै सुण देवजी, सत्य कहो छौ बात। झूठ कपट की वासना, दूर करो निज तात। इन उपर्युक्त दोनों सबदों को श्रवण करके वह जाट काफी नम्र हुआ और कहने लगा- हे तात! आपने जो कुछ भी कहा सो तो सत्य है किन्तु मेरे अन्दर अब भी झूठ कपट की वासना विद्यमान है। आप कृपा करके दूर कर दो। √√ सबद-15 √√ ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं। भावार्थ- हे जाट! तूं इन मेरे वचनों…

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सबद-16 : ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।

ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।  भावार्थ- प्रारम्भिक अवस्था में सोना भी लोहा जैसा ही विकार सहित होता है। खानों से निकालकर उसे अग्नि के संयोग से तपाकर विकार रहित करके सोना बनाया जाता है तथा उस पवित्र स्वर्ण से अच्छे से अच्छा गहना आभूषण बनाया जाता है जिसे युवक युवतियां पहनकर आनन्दित होते है। उसी प्रकार से इस मरूदेशीय जाट भी लोहे जैसे ही थे किन्तु अब मेरी…

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सबद-17 : ओ३म् मोरै सहजे सुन्दर लोतर बाणी, ऐसो भयो मन ज्ञानी।

‘दोहा‘‘ जाट परच पाऐ लग्यो, हृदय आई शांत। सतगुरु साहब एक है, गई हृदय की भ्रान्त। प्रसंग दोहा विश्नोईयां ने आयके, इक बूझण लागो जाट। जाम्भोजी के अस्त्री है, ओके म्हासूं घाट। विश्नोई यूं बोलियां, नहीं लुगाई कोई। निराहारी निराकार है, पुरू पुरूष परमात्म सोई। झगड़त झगड़त उठ चल्या, जम्भ तंणै दरबार। जायरूं पूछै देव ने, इसका कहो विचार। जम्भेश्वर इण विधि कह्यो, थे जु लुगाई जान। विश्नोई ऐसे कह्यो, दीठी सुणी न कान। सबद सुणायों देवजी, ऐसे कह्यो विचार।…

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सबद-18 ओ३म् जां कुछ जां कुछ जां कुछू न जांणी,नां कुछ नां कुछ तां कुछ जांणी। 

ओ३म् जां कुछ जां कुछ जां कुछू न जांणी,नां कुछ नां कुछ तां कुछ जांणी।  भावार्थ- जो व्यक्ति कुछ जानने का दावा करता है अपने ही मुख से अपनी ही महिमा का बखान करता है। वह कुछ भी नहीं जानता, , अन्दर से बिल्कुल खोखला है और इसके विपरीत कोई व्यक्ति कहता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता वह कुछ जानता है। अहंकार शून्यता ही व्यक्ति को ज्ञान का अधिकारी बनाता है। इस दुनिया में अपार ज्ञान राशि है…

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शब्द – 19 ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो।

ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो। भावार्थ- रूपवान अरूपवान प्रत्येक शरीर तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मैं ब्रह्म रूप से रमण करता हूं। दृष्ट रूप कण कण मे तथा अदृष्ट रूप कण कण में मैं सर्वत्र तिल में तेल, फूल में सुगन्ध्धी की तरह हर जगह प्रत्येक समय में समाया हुआ हूं। इसलिये सर्व व्यापकत्व परमात्मा स्वतः ही सिद्ध होता है। अनन्त जुगां में अमर भणीजूं, ना मेरे पिता न मायो। मैं देश तथा काल से भी…

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सबद-20 : ओ३म् जां जां दया न माया, तां तां बिकरम काया।

ओ३म् जां जां दया न माया, तां तां बिकरम काया। भावार्थ- जिस जिस व्यक्ति में दया भाव तथा प्रेम भाव नहीं है, उस व्यक्ति के शरीर द्वारा कभी भी शुभ कर्म तो नहीं हो सकते। सदा ही मानवता के विरूद्ध कर्म ही होंगे। इसलिये दया तथा प्रेम भाव ही शुभ कर्मों का मूल है। जां जां आव न वैसूं, तां तां सुरग न जैसूं। जहां जहां पर आये हुऐ अतिथि को आदर – सत्कार नहीं है अर्थात् ‘‘आओ, , बैठो,…

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