साखी साच तूं मेरा सांई, अवर न दूजा कोई

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

साच तूं मेरा सांई, अवर न दूजा कोई।1।
जिण आ उमति उपाई, सिरजण हारो सोई।2।
साचा सेती सन्मुख, दुमना सेती दोई।3।
खालक सूं छाने कित, छिन कीजै चोरी।4।
भगवत नै सब सूझै, गढ़ दरवाजा मोरी।5।
किहिंका मइया बाबो, किहिंका बहण र भाई।6।
सब देखंता चाल्या, काहु की कछु न बसाई।7।
हंसा उड़ चाल्या, जब बेलड़िया कुम्हलाई।8।
हंसा उडण की बारी, सुकरत साथ सगाई।9।
किण ही सुगरे मोमण ने, बांधी सत की पाली।10।
आवैलो जब खोजी, लेलों खोज निकाली।11।
कोड़ी पांच पार पहोंता, जां की धार करारी।12।
कोड़ी सात पार पहोंता, हरिचंद सा शुचियारी।13।
कोड़ी नव पार पहोंता, बार बारा की आयी।14।
साह सही सूं आयो, थलसिर एकल वाई।15।
निर्णुण रूप निरंजन, अलख न लखियो जाई।16।
दीन ताज दीन बोले, जम्भ तेरी शरणाई।17।
भावार्थ-हे सतचित आनन्द स्वरूप परमेश्वर! आप ही मेरे ईश्वर स्वामी हो।
आप से भिन्न और किसी को मैं नहीं जानता हूं। और नहीं किसी से मेरा
सम्बन्ध ही है।1। जिस निराकार निरंजन ने सर्वप्रथम रचना की इच्छा प्रगट
की, ‘‘एकोहं बहुस्याम प्रजायेय’’ मैं एक से अनेक हो जाऊं। अकल रूप
मनसा उपराजी। इस प्रकार की इच्छा करने वाले सर्वेश्वर ही सृष्टि के
रचयिता है। पालन-पोषण कर्ता विष्णु ही है। उनसे भिन्न मैं किसी ओर को
क्या जानूं।2। जो वास्तव में सच्चा है उसके तो सतगुरु देव सन्मुख ही रहते है
क्योंकि भक्त तथा भगवान दोनों ही सच्चे है इसलिये मेरा विलाप है परन्तु जो
दुमना है अर्थात् कथनी और करनी में अन्तर है। झूठ-कपट वासना से युक्त
है उनसे मेरे सच्चे प्रभु सदा ही दूर है।3। वह परमात्मा सर्व व्यापक है उनसे
कुछ भी छुपा हुआ नहीं है तो फिर उनसे छुपकर के चोरी कैसे कर सकते है।
चोरी भले ही करें किन्तु उनका लेखा-जोखा अवश्य ही देना होगा।4। उस

परमात्मा को तो सभी कुछ दिखाई देता है चाहे आप कहीं भी किसी भी गढ़
दरवाजे अथवा गुफा में छुप जाओ।5। व्यक्ति अपने शरीर तथा माता-पिता,
बहन-भाई के पालन-पोषण करने के लिये ही तो चोरी करता है, दुष्कर्म
करता है परन्तु विचार करके देखा जाये तो न तो अपना शरीर ही निजी है और
न माता-पिता, बहन-भाई ही सदा साथ देने वाले है तो फिर अपने जीवात्मा
को क्यों पाप पंक में डूबो रहा है।6। सभी कुछ इन्हीं आंखों से देखते हुए चले
गये। ‘‘थिर न लाधो थाणों’’ लाख उपाय करने पर भी किसी को बचाने में
समर्थ नहीं हो सके।7। जब शरीर वृह्ावस्था को प्राप्त हो गया तब यह
जीवात्मा रूपी हंस छोड़कर चला जाता है जिस प्रकार से हंस बेल-वृक्ष आदि
कुम्हला जाते है तो उसे छोड़कर चले जाते है, अन्यत्र वास लेते है वही दशा
जीवात्मा की होती है।8। अन्य हंस तो उड़कर चले गये है। हे जीवात्मा!
अबकी बार तेरी भी बारी आ गयी है और जर्जरित शरीर छोड़कर तुम्हें अभी
प्रस्थान करना होगा। यहां से चलते समय साथ में कुछ भी नहीं चलेगा परन्तु
एक मात्र शुभ कर्म ही साथ चलेंगे, आगे जाकर गवाही देंगे। कहा भी
है-सुकरत साथ सगाई चालै।9। इस संसार में सुगरे भक्त ने ही सत की पाल
बांधी है, अपने जीवन में सत को अपनाया है जिससे काम ÿोध लोभादि से
रक्षा करने में समर्थ हो सके। अन्य तो बहाव में बहे जा रहे है।10। जब अन्त
काल में यम के दूत खोजकर लेने के लिये आयेंगे तब आप चाहे कहीं भी
छुपने की कोशिश क्यों न करें वह खोज ही लेगा और पकड़कर ले ही
जायेगा।11। इस सत के मार्ग पर चलते हुए प्रहलाद के साथ सतयुग में पांच
करोड़ पार पहुंच गये क्योंकि उन लोगों ने कष्ट उठाकर भी धर्म के मार्ग को
नहीं छोड़ा।12। त्रेता में सात करोड़ हरिश्चन्द्र के साथ पार पहुंच गये क्योंकि
हरिश्चन्द्र स्वयं पवित्र आत्मा सत्यवादी था तो उसकी प्रजा भी वैसा ही
आचरण करने वाली थी।13। द्वापर युग में नौ करोड़ युधिष्ठिर के साथ पार
पहुंच गये। और अबकी बार इस कलयुग में कवि कहता है कि हमारी बारी
है। हम उन्हीं प्रहलाद पन्थ के बिछुड़े हुए जीव है, अब अवसर आ चुका
है।14। इस सम्भराथल पर स्वयं विष्णु ही सत्य के रूप में आये है स्वयं
अकेले होते हुए भी जगत के जीवों को तारने के लिये बीड़ा उठाया है अबकी
बार यदि चूक गये तो फिर सदा के लिये भटक ही जायेंगे।15। कवि तेजो
कहता है कि वह तो निर्गुण निरंजन अलख रूप है यदि तर्क वितर्क के द्वारा

उन्हें जानने की कोशिश करेंगे तो निश्चित ही असफल रहेंगे। हे गुरुदेव! हम
तो आपकी शरण ग्रहण ही कर सकते है। दीन भाव से विनती ही कर सकते
है इसके अतिरिक्त आपके बारे में जानने का कोई उपाय नहीं है। इस साखी
द्वारा तेजोजी कवि ने जन साधारण को सम्भराथल पर जाकर जीवन की
भलाई करने का आह्वान किया है।

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *