खेजङली बलिदान

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

जोधपुर जिले से लगभग 25 किलोमीटर दूर दक्षिण में प्रकृति के आंचल में बसा खेजङली गांव यहां हुए पर्यावरण यज्ञ के लिए प्रसिद्ध है जिसे यहां के श्रेष्ठ मनुष्यों ने अपने शरीर की यज्ञाहुति देकर सफल बनाया। यहां वृक्ष रक्षार्थ बिश्नोईयों ने अहिंसात्मक रूप से आत्मोसर्ग किया, यह बलिदान सन् 1730 (विक्रम संवत् 1787) में हुआ। जब जोधपुर के राजा अभयसिंह नये महल के निर्माण का निर्णय लिया तो चुने को पक्काने हेतु लकड़ियोँ की आवश्यकता पड़ी तब राजा ने दीवान गिरधर दास को खेजङली वृक्षों को आदेश दिया। जब इस बात की खबर जंभ अनुयायियों को हुई तो उन्होंने जांभोजी द्वारा प्रदत्त शिक्षा “जीव दया पालणी, रूंख लीलो नी घावे” का अनुसरण करते हुए वृक्ष नहीं काटने दिये। जब इसकी सूचना मजदूरों ने गिरधर भंडारी को दी तो गिरधर ने बिश्नोईयों को दूर रहने को कहा और मजदूरों को पेड़ काटने का आदेश दिया तब बिश्नोई लोगों ने जांभोजी की बात “संसार में प्रत्येक प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखना और हरे वृक्ष नहीं काटना” (यहां जांभोजी ने वृक्षों को उन जीवों में शामिल कर, अहिंसा से भी आगे की बात कही, जैसे शायद यह सृष्टि बचाने की अंतिम बात हो) का स्मरण कर प्रतिक्रियात्मक रूप से वृक्षों की कटाई से पहले स्वयं की मृत्यु स्वीकार हरे वृक्षों से लिपट गये। निर्दयी गिरधर ने वृक्षों से लिपटे बिश्नोईयों को भी साथ काटने का आदेश दिया जिसमें वृक्षों से पहले खुद को समर्पित कर बिश्नोईयों ने धर्म नियमों के प्रति अनंत आस्था प्रकट करते हुए “जीव दया पालणी, रूंख लीलो नी घावे” को प्रत्यक्ष रूप से साकार किया॥ पर्यावरण रक्षण हेतु घटित हुए इस यज्ञ में 84 गांवों के 64 गौत्रोँ के 217 परिवारों के, 363 नर-नारियोँ ने अपने शरीर को अर्पित किया। इस अद्वितीय यज्ञ में सर्वप्रथम “सिर सांटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण” का उद्यघोष करती वीरांगना नारी ने अपने शरीर की आहुति दी। इस घटना के उपरांत जोधपुर राजा ने बिश्नोई समाज से क्षमायाचना कर उन्हें ताम्रपत्र लिखकर दिया था जिसमें बिश्नोईयों के गांवों में हरे वृक्षों की कटाई निषेध और भविष्य में ऐसी घटना न होने का आश्वासन दिया गया। 10 सितंबर 1989 को खेजङली में वृक्ष रक्षार्थ शहीदों की याद में यहां शहीद स्मारक निर्मित किया गया, जहां देखा जाए तो प्रतिदिन प्रकृति प्रेमियों का मेला लगा रहता है पर प्रमुख रूप से प्रतिवर्ष शहीदी दिवस के उपलक्ष में भादवा सुदी दशमी को पर्यावरण मेला भरता है जिसमें बिश्नोई व पर्यावरण प्रेमी शहीदों को नमन करने आते है। आज भी शहीद स्मारक के आसपास की मिट्टी लाल है। स्मारक के पीछे गुरु जम्भेश्वर जी का भव्य मंदिर स्थित है जो बिश्नोईयों के प्रकृति प्रेम और अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। खेजङली मेले की शुरुआत अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के संस्थापक श्री संत कुमार जी राहङ ने शहीदी स्मारक बनवा करवाई थी। खेजङली वृक्षों से आच्छादित शहीद स्मारक खेजङली का स्वरूप मनमोहक है। यहां प्रत्येक प्रजाति के पक्षी स्वच्छंद भाव से घूमते मिल जाते है।

गुरु जांभोजी की मानव समाज को हमेशा प्रकृति संरक्षण को प्रेरण की शिक्षा का द्वितीय रूप है खेजङली धाम॥ सच में खेजङली धाम अनुपम और प्रकृति के वास्तविक स्वरूप को धारित मन को प्रसन्न कर देने वाला मानव व वन और वन्य जीवों के प्रेम का स्वरूप है। कौन है जो ऐसे दर्शय को पास से नहीं निहारना चाहेगा, यहां आकर पर्यावरण संरक्षण की परंपरा से नहीं जुड़ना चाहेगा। आज पर्यावरण संरक्षण हेतु घटित हुई इस अहिंसात्मक आत्मोसर्ग की घटना की याद में राज्य सरकार पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति विशेष को प्रतिवर्ष “अमृता देवी पुरस्कार” से सम्मानित करती है।
खेजङली धाम राज्य में पर्यटन में भी अहम माना जाता है। ऐसे पवित्र तीर्थ स्थल पर आकर यहां के प्राकृतिक मनोहरम दर्शयों को देखना ही अपने आप में गौरव की बात है।
राजस्थान के सुदूर मरु आंचल में स्थित खेजङली तीर्थ स्थल समूचे विश्व में पर्यावरण का एक मित्र तीर्थ स्थल है जो मानव समाज को सदा-सर्वदा प्राकृतिक संपदा संरक्षण की प्रेरणा देता रहेगा॥

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *