रविवार: व्रत विधि, कथा एवं आरती

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

सूर्यदेव की दो भुजाएँ हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान रहते है ; उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित हैं। उनके सिर पर सुन्दर स्वर्ण मुकुट तथा गले में रत्नों की माला है। उनकी कान्ति कमल के भीतरी भाग की-सी है और वे सात घोड़ों के रथ पर आरूढ़ रहते हैं।

सूर्य देवता का नाम सविता भी है, जिसका अर्थ है- सृष्टि करने वाला ‘सविता सर्वस्य प्रसविता’ । ऋग्वेद के अनुसार आदित्य-मण्डल के अन्तःस्थित सूर्य देवता सबके प्रेरक, अन्तर्यामी तथा परमात्मस्वरूप हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्मस्वरूप हैं, सूर्य से जगत् उतपन्न होता है और उन्हीं में स्थित है। सूर्य सर्वभूतस्वरूप स्नातन परमात्मा है। यही भगवान् भास्कर ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र बनकर जगत् का सृजन, पालन और संहार करते हैं। सूर्य नव ग्रहों में सर्वप्रमुख देवता हैं।

जब ब्रह्मा अण्डका भेदन कर उत्पन्न हुए, तब उनके मुख से ‘¬’ महाशब्द उच्चरित हुआ। यह ओंकार परब्रह्म है और यही भगवान् सूर्य देव का शरीर है। ब्रह्मा के चारों मुखों से चार वेद आर्विर्भूत हुए , जो तेज से उदीप्त हो रहे थे। ओंकार के तेज ने इन चारों को आवृत कर लिया। इस तरह ओंकार के तेज से मिलकर चारों एकीभूत हो गये। यही वैदिक तेजोमय ओंकार स्वरूप सूर्य देवता हैं। यह सूर्यस्वरूप तेज सृष्टि के सबसे आदि में पहले प्रकट हुआ, इसलिये इसका नाम आदित्य पड़ा।

एक बार दैत्यों, दानवों एवं राक्षसों ने संगठित होकर देवताओं के विरूद्ध युद्ध ठान दिया और देवताओं को पराजित कर उनके अधिकारों को छीन लिया। देवमाता अदिति इस विपत्ति से त्राण पाने के लिये भगवान् सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर अदिति के गर्भ से अवतार लिया और देव शत्रुओं को पराजित कर सनातन वेदमार्ग की स्थापना की। इसलिये भी वे आदित्य कहे जाने लगे।

भगवान् सूर्य का वर्ण लाल है। इनका वाहन रथ है। इनके रथ में एक ही चक्र है, जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मास स्वरूप बारह अरे हैं, ऋतुरूप छः नेमियँा और तीन चैमा से-रूप तीन नाभियँा हैं। इनके साथ साठ हजार बालखिल्य स्वास्तिवाचन और स्तुति करते हुए चलते हैं। ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस और देवता सूर्य नारायण की उपासना करते हुए चलते हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं। भगवान् सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा छः वर्ष की होती है।

।। रविवार व्रत के नियम ।।

  • सुबह स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धरण करें, शान्त मन से व्रत का संकल्प लें ।
  • सत्य बोलें व ईमानदारी का व्यवहार करें और परोपकार का काम अवश्य करें ।
  • व्रत के दिन एक ही समय भोजन करें । भोजन तथा फलाहार सुर्यास्त से पहले ही कर लें ।
  • यदि सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य भगवान को जल देकर ही अन्न ग्रहण करें ।
  • व्रत की समाप्ति के पूर्व रविवार की कथा अवश्य सुनें या पढ़े ।
  • व्रत के दिन नमकीन और तेलयुक्त भूलकर भी न खाएं ।
  • इस व्रत के करने से नेत्र रोग को छोड़कर सभी रोग दूर होते हैं ।
  • राज-सभा में सम्मान बढ़ता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है

।। रविवार व्रत कथा ।।

बहुत पुराने समय की बात है । एक नगर में बुढ़िया रहती थी । वह हर रविवार को सूर्य भगवान का व्रत रखती थी । उसका नियम था कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, शौच-स्नानादि करके पड़ोसिन की गााय के गोबर से घर को लीपकर, शुद्ध और सात्विक भाव से भोजन बनाती थी । तीसरे पहर सूर्य भगवान को भोग लगा कर स्वंय शेष भोजन का प्रसाद समझकर विनम्र भाव से ग्रहण करती थी । इस व्रत के फल स्वरूप उसका घर धन-धन्य से पूर्ण रहता था । वह सभी प्रकार से सुखी और सन्तुष्ट थी। उस बुढ़िया के पड़ौस में एक और औरत रहती थी । उसे वृद्धा की श्री सम्मपन्ता अच्छी नहीं लगी । इसलिए उसने रविवार के दिन, वृद्धा के उठने से पहले अपनी गाय का गोबर उठाकर अन्दर रख लिया । आस पास कोई और गाय न थी फलतः बुढ़िया घर न लीप सकी, भोजन बना न सकी, भगवान को भोग न लगा सकी इसलिए भूखी प्यासी सो गई । उस रात बुढ़िया के स्वप्न में भगवान दिखाई दिए । अन्तर्यामी भगवान ने अनजान बनते हुए वृद्धा से भोग न लगाने और प्रसाद न पाने का रहस्य पूछा । वृद्धा ने बताया कि गाय का गोबर न मिलने से वह ऐसा न कर सकी । तब भगवान ने कहा, भगतिन तुम क्योंकि सच्चे मन से, निष्काम भाव से मेरा व्रत रखती हो, इसलिए मैं तुमसे प्रसन्न हूँ ।

मैं तुमें एक ऐसी गााय देता हूँ जो तुम्हारी सभी कामनाएं पूरी करेगी क्योंकि मेरा व्रत भक्तों के सभी संकटो और अभावों को दूर करके ऋृद्धि सिद्धि देता है। सुबह उठते ही वृद्धा ने अपने आँगन में एक सुन्दर गाय का बछड़ा देखा वह उस गाय व बछडे़ की बडे़ प्यार से सेवा करने लगी । वह गाय विशेष गुणों से सम्पन्न थी । वह सोने का गोबर करती थी । संयोग सें उसके प्रथम गोबर त्याग को ईष्र्यालु पड़ोसिन ने देख लिया । सोने के गोबर को उठाकर उसने उसके नीचे अपनी गाय का गोबर रख दिया । अब वह इस ताक में रहने लगी और जैसे ही गाय गोबर करती पड़ोसिन उसे उठाकर ले जाती और उसके स्थान पर अपनी गाय का गोबर रख जाती ।

सूर्य भगवान ने चालाक पड़़़ोसिन की चालाकी से वृद्धा की रक्षा का उपाय निकाला । शाम के समय बड़ी जोर की आँधी चली । वृद्धा गाय को घर के अन्दर बान्धकर सोने चली गयी। सुबह उठने पर गाय के नीचे सोने का गोबर देखा तो उसे उसकी विशेषता का पता चल गया । अब वह शाम को गाय को घर में ही बाधँने लगी । ईष्र्यालु पड़ोसिन ने इस प्रकार अपने को सोने के गोबर से वंचित होता देखा तो उसनंे राजदरबार में जाकर राजा को सुनाया कि मेरी पड़ोसिन की गाय सोने का गोबर देती है । वह आपकी गौशाला में रहनी चाहिए, राजा को बात जंच गई । उसने उसी समय सिपाहियों को भेज कर गाय खुलवा कर मगँवाई । वृद्धा के रोने-धोने का राजकर्मचारियों पर कोई भी असर नहीं हुआ ।

वह शनिवार की शाम थी । दूसरे दिन रविवार था । वृद्धा गाय के वियोग और गोबर के अभाव के कारण उस दिन घर-आँगन न तो लीप सकी, न ही भोजन बना सकी और न ही सूर्य भगवान को भोग लगा सकी । दयालु भगवान को वृद्धा पर दया आई । उन्होंने राजा की गौशाला को गोबर से ऐसा भरा कि राजा की नाक में दम आ गया और उन्होने राजा को स्वप्न में हुक्म दिया कि, ‘या तो सुबह होते ही वृद्धा की गाय उसके पास भिजवा दे अन्यथा तुझको और तेरे राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर दूंगा।’ सुबह होते ही राजा ने सम्मान के साथ गाय वृद्धा के पास भेज दी और राज्य में घोषणा करा दी कि जो कोई भी सूर्य भगवान की भगतिन वृद्धा को किसी भी प्रकार से सताएगा, उसको कड़ी सजा दी जाएगी । दूसरे आदेश में उसने प्रजा को हर रविवार को सूर्य भगवान का व्रत रखने का हुक्म दिया । व्रत के अच्छे फलस्वरूप राजा की और प्रजा की सभी मनोकामनायें पूरी हो गई और प्रजा तथा राजा आंनद के साथ भगवान की कृपा का बखान करते हुए दीर्घकाल तक सुखी और संतुष्ट रहकर स्वर्गलोक को सिधार गए ।

।। रविवार की आरती ।।

कहु लगि आरती दास करेंगे सकल जाकी जोति विराजै ।
सात समुद्र जाके चरणनि बसे कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा कहा भयो मन्दिर दीप धरे, हो राम ।
भार अठारह रोमावलि जाके कहा भय सिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नित प्रति लागे कहा भय नैवैद्य धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजै कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख शोभत कहा भयो ब्रह्मा वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकोरें कहा भयो सिर चंवर दुरे हो राम ।
लाख चैरासी बन्द छु़ड़ाये केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो राम ।।

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *