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ऐसा कहकर आखड़ी में तेहरवें,चौदहवें,पन्द्रह व सोहलवे नियम का संकेत किया गया है।
चोरी नही करनी चाहिए।मनुष्य जिस धन पर लोक-मर्यादा व धर्म -मर्यादा को छोड़कर अधिकार करता है-वह धन उसके पुण्य हरण करता है तथा बुद्धि का नाश करता है।जो मनुष्य पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान तुच्छ समझता है वह मनुष्य सच्चे अर्थों में वैष्णव है।पराये धन की चोरी के समान ही समय,वचन व परिश्रम की चोरी भी हानिकारक होती है।परिश्रम से जी चुराकर चालाकी से पैसा कमाने वाला नोकर चोर है।रिश्वत (घूस)लेकर जनता के कार्य करने वाला अफसर चोर है।जो राजकीय कर्मचारी या अधिकारी अपने कर्तव्य पालन में निष्ठापूर्वक कार्य न करें-वे भी चोर है।अतः किसी भी व्यक्ति को अपने कर्तव्य-पालन में तत्परता पूर्वक कार्य करना चाहिए।
किसी दूसरे की सम्पति या किसी भी वस्तु का उपयोग मालिक के बिना पूछे करना चोरी है।इसी प्रकार दूसरे के स्वामित्व के अंतर्गत आने वाली किसी भी प्रकार की सम्पति या पशु धन पर अपना ठप्पा लगाना निसंदेह चोरी है।इसलिए इस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति से बचना चाहिए।सत्य,शील,दया, धर्म इत्यादि का पालन तथा चोरी,नींदा, झूठ इत्यादि का त्याग ऐसे ही अनेक वचन हमारे देश मे बहुत प्राचीन काल से समादृत है।
धर्मशास्त्रों में तो इनके लिए कुछ न कुछ आदेश मिलते हैं।
कपट,शठता,चोरी,नींदा, दूसरों के दोष देखना,दुसरो को हानि पहुँचना, प्राणियो की हिंसा करना,झूठ बोलना जो इन दुर्गणों का सेवन करता है उसकी तपस्या क्षीण होती है और जो विद्वान इन दोषों को कभी अपने आचरण में नही लाता,उसकी तपस्या निरंतर बढ़ती रहती है।इस लोक में पुण्य और पाप कर्म के सम्बंध में अनेक प्रकार के विचार होते रहते हैं।यह कर्मभूमि है।इस जगत में शुभ और अशुभ कर्म करके मनुष्य शुभ कर्मो का शुभ फल पाता है और अशुभ कर्मो का अशुभ फल भोगता है।
श्री गुरुजाम्भो जी सबद नम्बर 61-62 में शक्तिबाण से घायल लक्ष्मण होश में आये तो श्रीराम ने लक्ष्मण से बेहोश होने का कारण पूछा हे लक्ष्मण मुझे अब आप बताओ कि उपरोक्त अठारह दोषों में से कौन से दोष के कारण तुम्हे मूर्छित होना पड़ा।जिनमे 6 दोष इस प्रकार है।
1- “कै तै कारण किरिया चुकियो” ?
— हे श्री राम ! मैंने नित्य किरिया के नियम पालन की भूल नही की।
2- “कै तै आवा कौरंभ चोरया” ?
— मैंने कुम्हार की निहाई(आव)से बर्तन नही चुराए।
3-“कै तै बाड़ी का बन फल तोड़या” ?
-मैंने दूसरे के बाग या खेतो में लगे फल नही तोड़े।
4-“कै तै बैर विरोध धन लोड़या” ?
- मैंने किसी के धन को जबरदस्ती नही हड़पा।
5-“कै तै हड़ी पराई नारी” ?
-मैंने पराई स्त्री का हरण नही किया।
6-“कै तै वाट कूट धन लीयो”? - मैंने किसी से राहजनी करते हुए धन नही छीना।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमायाचना👏👏
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