वाद-विवाद नहीं करना चाहिए

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व्यर्थ का वाद-विवाद नही करना चाहिए।कुछ लोग ऐसे विचार रखते हैं कि सामने वाले को अपनी वाक तर्क शक्ति के द्वारा किसी प्रकार से पराजित कर दिया जाय।कुछ लोग मूर्खता का परिचय देते हुए जिद्द करते है जिससे लड़ाई-झगड़ा, मनमुटाव,वैर-विरोध आदि अनेक प्रकार की बीमारियां खड़ी हो जाती है।यह व्यर्थ के विवाद के अंतर्गत होता है।
हमेशा अच्छे विचार रखने चाहिए जो सामने वाले को मनमोहक बना दे।
श्री गुरुजाम्भो जी कहते हैं कि –
“अठगी ठगण अदगी दागण अगंजा गजण उथन नाथन अनु निवावण काही को खैकाल कियो
काही सुरग मुरादे देसा काही दोरो दींयू”

–मैं यहाँ नही ठगे जाने वाले लोगो को ठगने के लिए यानी अज्ञानियों का अंहकार दूर करने के लिए,धर्म विमुख लोगो को धर्म की मर्यादा में बांधने के लिए और उदंड लोगो को ज्ञानवाणी से समझाने के लिए ,धर्म सम्बंधी, कोई बात न मानने वालों को धर्म की बात मनवाने के लिए तथा अंहकारी लोगो को ज्ञानवाणी से नम्रशील बनाने के लिए यहाँ आया हूं।हमने विभिन्न अवतारों के रूप में अनेक दुष्ठो को मृत्युदंड दिया है अर्थात दुष्टता को नष्ठ किया है।इस अवतार काल मे सत्कर्म करने वालो को स्वर्ग मिलेगा और बुरे आचरण वालो को नरक मिलेगा।
“कुण जाणे म्हे वाद विवादी”
“कुण जाणे म्हे लुब्ध सवादी”

–इस रहस्य को कोई नही जानता कि मैं वाद -विवादी हूं या लोभी और स्वादि हूँ।
“गड़बड़ गाजा काय बिवाज़ा”
“कण बिन कूकस काय लेणा”

-हे लोगो ! आप अनर्थ बोल बोलकर क्यो गरजते हो और विवाद करते हो।
बिना अनाज के भूसा इकट्ठा क्यो करते हो,वाद विवाद करने में नुकसान ही पहुचने वाला है।
“भरमी वादी अति अंहकारी करता गरब गुमानो”
–भृमित वाद-विवादी, अभिमानी भी अपने अभिमान के कारण नष्ठ हो जाते हैं।इस नाशवान शरीर से अंहकार युक्त होकर तू दुष्कर्म करता है।यह कैसा अभिमान है ?
इसी प्रकार अनेक लोग जो भरम में पड़े हुए थे,अंहकारी थे,गर्व गुमानी थे वे भी नष्ठ हो गए थे।
नश्वर वस्तुओं के लिए अंहकार नही करना चाहिए।
“वाद विवाद फिटाकार प्राणी”
“छोड़ो मनहट मन का भाणो”

— हे प्राणी ! आप वाद विवाद और बकवाद से दूर रहो और अपने मन के हठ एवं अंहकार को छोड़कर अच्छा आचरण धारण करो अन्यथा मन हठ के कारण बर्बाद हो जाओगे।
“जे नर दावो छोड़्यो”
“राह तैतीसा जाणी”

  • जिस मनुष्य ने अपनेपन और अंहकार को त्याग दिया है उसने मोक्ष मार्ग को जान लिया है।
    “जे कोई आवै हो हो करता आप जै हुइये पाणी”
    “जाकै बहुती नवणी बहुती खवणी बहुती किरिया समाणी”
    “जाकी तो निज निरमल काया जोय जोय देखो ले चढिया असमानी”

    — यदि कोई व्यक्ति बहुत गुस्सा करता हुआ गालियां निकालता हुआ आता है तो अपने को पानी के समान ठंडा रहना चाहिए।
    जो व्यक्ति अत्यन्त नम्र, क्षमाशील तथा धैर्यवान है उसी की जीवात्मा को मोक्ष प्राप्ति होती है।
    “राय विसन से वाद न कीजै”
    “कांय बधारो दैत्य कुलू”
    “म्हेपण मेही थेपण थेही”
    “सा पुरुषा की लछ कुलू”
    “गाजै गुड़के से क्यू बिहै”
    “जेझल जाकी सहंस फणु”

    –हे बिदा ! तुम अभिमान के मद में अंदे होकर साक्षात परमात्मा से विवाद क्यों कर रहा है ?
    क्यो दुष्टों के कुल की वृत्ति बढ़ा रहा है।
    मैं तो मेरे जैसा हूं और तू तेरे जैसा है।तेरे में मेरे गुण नही है तुम सद्पुरुषों के लक्षण एव सद्गुण ग्रहण करो।हजारों फणों से निकलने वाले विष को झेलने की जिसमे क्षमता है वह तेरी झूठी धमकी से क्यो डरेगा।
    “विसन कू दोष किसो रै प्राणी”
    “आपै खता कमाणी”

    –हे प्राणियों ! इसमे ईश्वर का कोई दोष नही है क्योंकि अपने किये हुए कर्मो का फल तो भुगतना ही पड़ता है।
    इसलिए व्यर्थ के वाद विवाद का त्याग करके अच्छा व्यवहार क़ायम बनाये रखे।जिससे कुल की मान-मर्यादा पर कोई आंच न आये।
    मनुष्य की पहचान उसके आचरण से ही होती है।
    समस्त त्रुटियों के लिए क्षमायाचना👏👏

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Sanjeev Moga
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