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गुरु जाम्भोजी सामान्य मनुष्य नहीं थे। वे तो साक्षात् ईश्वर थे। इसलिए गुरु जाम्भोजी ने जन्म से ही अपनी अलौकिक शक्ति का परिचय देना प्रारम्भ कर दिया था। जन्म के बाद गांव की कोई भी स्त्री बालक को जन्म घूंटी देने में सफल नहीं हो सकी। जैसे ही स्त्रियां बालक को जन्म घूंटी पिलाने लगी, वैसे ही उन्हें बालक के कई मुख दिखाई देने लगे। इससे वहां उपस्थित सभी स्त्रियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे कुछ भी खाते-पीते नहीं थे। उनकी छाया भी दिखाई नहीं देती थी। सामान्य बालक की तरह गुरु जाम्भोजी शारीरिक आवश्यकताओं के अधीन नहीं थे। उनके दूध न पीने से उनके माता-पिता बड़े चिन्तित रहते थे। अपनी इस चिन्ता को वे लोगों पर भी प्रकट करते रहते थे और कहते थे कि बालक कमजोर होता जा रहा है। एक बार पालने में सोये हुए बालक को जब उनकी बुआ तांतू गोदी में लेने लगी, तो उठा नहीं सकी। इस पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने हांसादेवी को बुलाकर कहा कि बालक बहुत भारी हो गया है, वह उठाया ही नहीं जा रहा है। इस पर हांसा ने भी बालक को गोदी में लेने का प्रयास किया तो वह भी सफल नहीं हो सकी। तभी वहां लोहटजी भी आ गये उन्होंने भी बालक को उठाना चाहा, तो वे भी बालक को उठा नहीं सके किन्तु घर की नौकरानी ने बालक को उठा लिया। इस पर सबको बहुत आश्चर्य हुआ। बाद में सबने बारी-बारी से बालक को गोदी में लेकर देखा, तो बालक बहुत ही हल्का था। गुरु जाम्भोजी अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। वे उनकी बुजुरुग अवस्था में पैदा हुए थे। इसी कारण उनके माता-पिता एवं अन्य संबंधियों का उनके प्रति विशेष स्नेह था। गुरु जाम्भोजी का उठना-बैठना, खाना-पीना, खेलना-कूदना सामान्य बालक की तरह नहीं था। वे बहुत कम बोलते थे और अपने में ही लीन रहते थे। इससे उनके माता-पिता की चिन्ता भी बढ़ने लगी। उन्होंने बालक के उपचार के लिए कई लोगों से पूछताछ की। उस समय नागौर में खेमनराय नाम का एक शमशान सेवी तांत्रिक ब्रा२ण रहता था। उसे लोग गुरु जाम्भोजी के उपचार के लिए लोहटजी के पास लाये। लोहटजी ने तांत्रिक ब्रा२ण से कहा कि यदि तुम बालक को ठीक कर दोगे, तो बदले में मैं तुम्हें धन और गाय दूंगा। तांत्रिक ने गुरु जाम्भोजी के उपचार के लिए अनेक प्रपंच किये, पर उसे सफलता नहीं मिली। तब तांत्रिक ने कहा कि यदि मेरे दीप प्रज्जवलित हो जायें, तो मैं बालक का उपचार कर सकता हूं। उसकी इस बात को सुनकर गुरु जाम्भोजी ने कच्चे सूत के धागे से, कच्चे घड़े द्वारा कुएं से पानी निकाला। उस पानी को गुरु जाम्भोजी ने दीयों में डाला और उन्हें प्रज्जवलित किया। इससे सबको बहुत आश्चर्य हुआ। उस ब्रा२ण ने तो गुरु जाम्भोजी के चरण ही पकड़ लिए। तब गुरु जाम्भोजी ने वहां उपस्थित लोगों एवं ब्रा२ण को समझाते हुए प्रथम सबद कहा। उस समय गुरु जाम्भोजी की आयु सात वर्ष की थी।
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Very nice