गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
नित ही मावस नित ही संकरांत
पूर्व शब्द के प्रसंगानुसार समराथल धोरे पर संत मंडली में दान देने के समय एवं पात्र के बारे में चर्चा चल रही थी।उसी चर्चा के दौरान एक ब्राह्मण ने अपना मत प्रकट किया की अमावस्या के दिन जब नवग्रह एक स्थान पर हो। तब किसी तीर्थ स्थान पर दिया हुआ दान फलीभूत होता है। संत मंडली के ही कुछ लोगों ने श्री जंभेश्वर महाराज से दान के समय एवं स्थान के विषय में जानना चाहा, तब गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
नितही मावस नितही सकरांती नितही नवग्रह वैसे पांति

हे जिज्ञासु जन! शुभ कर्म करने के लिए समय एवं स्थान का बंधन व्यर्थ है। दान देने एवं सत्कर्म करने वालों के लिए हर दिन अमावस्या है। नित्य सक्रांति है। नित्य नव ग्रह एक ही स्थान पर प्रतिबद्ध हो कर बैठते हैं।

नितही गंग हिलोले जाय सतगुरु चीन्है सहजै नहाय

वहां पतित पावनी गंगा हमेशा ही हिलोरे मारती रहती है।परंतु उसमें वहीं सहज भाव से स्नान कर सकता हैं, जो सतगुरु को पहचानता हैं, परम तत्व का ज्ञाता हो।

निरमल पाणी निरमल घाट निरमल धोबी मांडयो घाट जे यो धोबी जाणै धोय घर में मैला वस्त्र रहै न कोय

गगन मंडल में स्थित चंद्रमा से नित्य पवित्र जल-अमृत की धारा बहती रहती है तथा आज्ञा-चक्र का त्रिवेणी घाट बड़ा ही पवित्र तीर्थस्थल है।उस घाट पर एकाग्र चित्त रूपी धोबी, संकल्प-विकल्प होकर अपने संस्कार जनित पाप कृत्यों को धोने के लिए निरंतर तैयार बैठा रहता है ।यदि यह मन रूपी धोबी, पाप रूपी मलिन वस्त्रों को संयम रूपी साबुन से धोना जानता है तो इसके देह रूपी घर में पाप वासना रूपी कोई मेला वस्त्र नहीं मिलेगा।

एक मन एक चित्त साबण लाबै पहरंतो गाहक अति सुख पावै

सच्चा साधक जब एकाग्र मन और एकाग्र चित्त होकर अंत करण की कुत्सित वासनाओं रूपी वस्त्रों को सदवृतियों एवं संयम रूप साबुन से धोकर,पवित्र कर लेता है,तभी इस देह में शुद्ध अंतःकरण रूप वस्त्र को धारण करने वाला आत्मा प्रसन्न, आनंदमय स्थिति में मग्न रहता है।

ऊंचौ नीचौ करै पसारा नाहीं दुजै का संचारा

ऐसा साधक जब समाधि अवस्था में लीन रहता है तब वह बाहरी दुनिया से पूर्णत मुक्त होकर ऊपर सहस्त्रार दल कमल और नीचे मूलाधार चक्र के बीच सूषुम्ना मार्ग में से विचरण करता रहता है।

तिल में तेल पहुप में वास पाँच तत्व में लियो प्रकाश

जैसे तिलों में तेल ओर फूलो में गन्ध होती है वैसे ही पाँच तत्वों में आत्मा प्रकाशित है

बिजली कै चमकै आवै जाय सहज शून्य में रहे समाय

देह में आत्मा का आना जाना बिजली की चमक के समान क्षण मात्र में होता है परन्तु यह आत्मा शुन्य मण्डल यानि गगन मण्डल में रहती है ।

नैं यो गावै न यो गवावै सुरगे जाते वार न लावै

जब प्राणी को अपने आत्म- स्वरूप का ज्ञान हो जाता है तब वह उस आत्मा के बारे में न तो कुछ कहता है और न ही किसी और से जानना या सुनना चाहता है। कारण आत्म-तत्त्व पूर्णतः अनुभूति का विषय है इसमें कहने सुनने को कुछ नहीं है।अतः ऐसा आतमलीन साधक मौन धारण कर लेता है। ऐसे साधक को स्वर्ग पहुँचने में कोई देर नहीं लगती।

सतगुरु ऐसा तंत बतावै जूग जूग जीवै बहुरी न आवै

अतः हे जिज्ञासु!हम तुम्हारे सच्चे गुरु,उस आत्म तत्व की पहचान करवा रहे हैं,जिसे जाने के पश्चात तुम अमर हो कर युगों युगों तक बैकुंठ धाम में वास करोगे।तुम्हें फिर इस संसार में जन्म मरण के चक्कर में नहीं आना पड़ेगा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जाम्भाणी शब्दार्थ

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *