शब्द नं 62

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🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 पूर्व प्रसंग के शब्द में श्रीराम द्वारा पूछे गए प्रश्नों के संबंध में जो उत्तर लक्ष्मण जी ने दिए उन्हीं का उल्लेख करते हुए गुरु महाराज ने जमाती भक्तजनों को यह शब्द कहा:-
ना मैं कारण किरिया चुक्यो
ना मैं सूरज सामों थूक्यों

श्री राम द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर मैं लक्ष्मण ने कहा कि उन से कभी नित्य क्रिया कर्मों के पालन मे कोई भूल चूक नहीं हुई। न उन्होंने कभी सूर्य की ओर मुंह करके अपमान भाव से थूका ।

ना मैं उभे कांसा मांज़्या
ना मैं छान तिणुका खेंच्या

न ही मैंनें कभी खड़े-खड़े कांसे के जूठे बर्तन मांजे और न ही कभी किसी के छपर के तिनकें खींचकर निकाले।

ना मैं बांमण निवत बहैडया ना मैं आंवा कोरंभ चोरया

न मैंने कभी ब्राह्मण को भोजन के लिए आमंत्रण दे कर वापिस भूखा लौटाया। और न ही मैनें कभी किसी कुम्हार के आवा में से बर्तन चुराये।

ना मैं बाड़ी का बन फल तोड़या
ना मैं जोगी का खप्पर फोड़या

मैंने न ही कभी पराई बाड़ी के फल तोड़े और न ही कभी किसी जोगी का भिक्षा पात्र फोड़ा

ना मैं ब्राह्मण का तागा तोड़या
ना मैं बैर विरोध हट धण लोडया

न मैंने कभी किसी ब्राह्मण की जनेऊ तोड़ि,न उनका अपमान किया और न ही मैने बैर भाव से किसी के विरोध या हट पूर्वक किसी के धन को हड़प्पा।

ना मैं सूवा गाय का बच्छ बिच्छोडया
ना मैं चरती पिवती गऊ विडारी

न ही मैंने कभी किसी दुधारू गाय के बछड़े को उससे अलग किया और न ही मैनें कभी किसी चरती फिरती गाय को डरा कर भगाया

ना मैं हरी पराई नारी
ना मैं सगा सहोदर मारया

न मैंने किसी पराई स्त्री का अपरहण किया और न मैंने कभी अपने किसी सगे सम्बन्धियों या अपने माँ जाये भाई को मारा।

ना मैं तिरिया सिर खडग उभारया
ना मैं फिरते दांतण कियो

न ही मैंने किसी अबला स्त्री के सिर पर तलवार चलाई और न ही मैनें कभी चलते फिरते दांतुन किया।

ना मैं रण मैं जाय दोहो दीयों
ना मैं वाट कूट धन लीयो

न मैंने कभी वन में जाकर वहां आग लगाई और न ही मैनें कभी किसी राहगीर को मारपीट कर उसका धन हड़पा।

एक जू ओगूण रामे कियो अण हुतो मिरगो मारण गईयो आज्ञा लोप जू तुम्हारी होईयो

लक्ष्मणजी श्री राम को उत्तर देते हुए बतलाते हैं कि दोष यदि कोई हुआ है तो वह राम से ही हुआ है। राम से प्रथम गलती तो यह हुई कि वे एक अनहोने स्वर्ण मृग को मारने के लिए उसके पीछे गये। क्या सोने के भी कभी हिरण होते हैं?राम ने सीता के मोहवश वैसा किया।

दूजो ओगूण रामे कियो
एको दोष अदोषो दीयो
वन खंड मैं जद साथर सोईयो।
जद को दोष तदो को होईयो।

दूसरा दोष राम से यह हुआ कि सीता द्वारा लक्ष्मणजी पर संदेह करने और कटु शब्दों में लांछित करने पर जब वे राम के पीछे गये तो राम ने लक्ष्मण को अपनी आज्ञा पालन न करने का दोषी बतलाया। जबकि दोष सीता का था। इस प्रकार एक का दोष दूसरे को देना भी एक दोष था, जो राम ने किया।हाँ, लक्ष्मण जी स्वीकारते हैं कि वनवास काल में जब एक बार राम बाहर गए हुए थे,जब वे राम के बिस्तर पर सो गए थे।बड़े भाई के बिस्तर पर सोना उसकी गलती थी।यह दोष उनसे अवश्य हुआ और उसी दोष के फलस्वरूप उन्हें शक्ति बाण लगने पर मूर्छित होना पड़ा।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
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