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*ओम् आद शब्द अनाहद बाणी*
एक समय की बात,जोधपुर नरेश राव मालदेव समराथल धोरे पर आये और उन्होंने गुरु जंभेश्वर भगवान के सम्मुख जिज्ञासा प्रकट की कि सृष्टि के आदि काल में कौन देवता उत्पन्न हुआ? मालदेव की जिज्ञासा जान,गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:-
*ओम आदि सबद अनाहद वांणी चवदै* *भूवन रहया छल पांणी*
हे जिज्ञासु! जिस समय यह सृष्टि रची,उससे पहले इस संपूर्ण ब्रह्मांड में एक अनहद-नाद, अनहत ध्वनि,शाश्वत नाद परिव्याप्त था। परमब्रह्म, सदाशिव के उस सीमाहीन ध्वनि संसार में, सर्वप्रथम ओम शब्द की उत्पत्ति हुई। ओम शब्द परब्रह्म का प्रथम शब्द रूप है। इसी शब्द से सर्व प्रथम सृष्टि की उत्पत्ति हुई।जिस समय सर्वप्रथम ओम ध्वनि का उच्चारण हुआ उस समय चौदह भुवन जल मग्न थे।चारों ओर जल ही जल था।
*जिहिं पाणी से इण्ड उपंनां* *उपंनां ब्रह्मा इन्द्र मुरारी*
उस अपार जल राशि में सर्वप्रथम एक इंड(अंडा) उत्पन्न हुआ। वह इंडा ही विष्णु का आदी रूप था और तब फिर, उस इंड से ही ब्रह्मा और त्रिपुरारी शिव उत्पन्न हुए। इस प्रकार वह एक इंड ही रचयिता ब्रह्मा, पालक विष्णु और संहारक शिवः तीनों देवों के पृथक् – पृथक् रूप में विभक्त हो गये।ये ही तीनों सृष्टि के आदि देवता है। परम ब्रह्म की ये तीन शक्तियाँ ही विष्णु- ब्रह्मा और शिव कहलाती है।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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