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*भोम भली कृषाण भी भला*
गाँव जेतसर का जोधा नाम का एक जाट था। उसने कभी कोई शुभ कर्म नहीं किया, परंतु एक बार गर्मी के मौसम में उसने भूखे प्यासे कई साधु जनों को देखा। वह उन्हें अपने घर ले गया। जोधा ने साधुओं की अच्छी प्रकार सेवा टहल की, ठंडा पानी पिलाया ,अच्छा खाना खिलाया, ठंडी छाया, आराम करवाया। केवल एक दिन के साधु सत्कार से,उसके पूर्व जन्मों के सारे पाप नष्ट हो गये। उसका जीवन धर्ममय बन गया।उस जाट की कथा जान गुरु महाराज के पास बैठी संत मंडली तथा अनेक जोगी तथा जाटों ने गुरु महाराज से निवेदन किया कि, गुरु महाराज उन्हें कोई ऐसा शब्द ज्ञान सुनावें, जिसे सुन कर उनके मन में धर्म के प्रति अटूट विश्वास उत्पन्न हो। भक्तों की जिज्ञासा जान जाम्भोजी ने उन्हें यह शब्द कहा:-
*भोम भली कृषाण भी भला खेवट* *करो कमाई गुरू प्रसाद* *काया गढ़ खोजो दिल भीतर* *चोर न जाई*

भूमि अच्छी हो किसान भी अच्छा हो और परिश्रम से खेती की जाए तो उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं गुरु कृपा से गुरु के ज्ञानोपदेश से इस काया गढ़ को खोजो ताकि इस दिल में काम क्रोधादि चोर नहीं घूसने पाएँ

*थालिये आय सतगुरू परकास्यौ जोलै* *पड़ी लोकाई एक* *खिण में तीन भुवन* *म्हे पोखां जीवा जुण सवाई*

थली में( मरुस्थल में या समराथल पर) सतगुरु ज्ञान प्रकाशित कर रहा है उस प्रकाश में छिपी हुई वस्तुओं को तत्व की खोज लो हम क्षण मात्र में ही समस्त जीव योनियों समेत तीनों भुवनों का पोषण करते हैं

*करण समो दातार न हुवो जिण कंचण* *बाहु उठाई सोई कवीसां* *कवल नबेडी जिण सुरह* *सुबच्छ दुहाई*

(अज्ञान लोभ या माया के कारण बड़े बड़े पुरुष नष्ट हो गये )राजा कर्ण के समान प्रतिदिन स्वर्ण दान देने वाला कोई अन्य दानी पुरुष नहीं हुआ उसने ऋषियों को दान विषयक जो भी वचन दिया उसका पालन किया तथा ग्वाल ऋषि के माँगने पर तो बछड़े सहित कामधेनू को भी उसके लिए प्राप्त किया था

*मेर समो कोई केर न देख्यो सायर जिसी* *तलाई लंक सरीखों* *कोट न देख्यो समंद सरीखी* *खाई*

सुमेरू पर्वत के समान दूसरी कोई ओट ओर सागर के समान कोई तलैया नहीं दिखाई देती है लंका के समान कोई गढ़ और रत्चनाकार के समान कोई खाई नहीं देखी

*दशरथ सो कोई पिता न देख्यो देवल* *देसी माई सीत* *सरीखी तिरिया न देखी गरब न करियो* *कांई*

दशरथ के समान पिता देवकी के समान माता तथा सीता के समान दूसरी कोई स्त्री नहीं देखी ये भी सब संसार से चले गए अतः किसी को किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं करना चाहिए

*हनमत सो कोई पायक न देख्यो भीम* *जैसी सबलाई रावण* *सो कोई राव न देख्यो जिन* *चोहचक आण फिराई*

हनुमत जी के समान कोई सेवक तथा भीम की शक्ति के समान किसी की शक्ति नहीं देखी रावण के समान चारों दिशाओं में अपनी दुहाई फिरा देने वाला कोई राजा नहीं देखा गया है

*एक तिरिया के राहा बेधी लंका फेर* *बसाई संखा मोहरा सेतम* *सेतुं ता क्यूं बिलगै* *काई*

एक स्त्री सीता के कारण उस जैसे बड़े योद्धा की लंका का विनाश हुआ तथा दुबारा बसाई गई हे मानव तू व्यर्थ में ही उन शंख मोहर आदि के मोह में क्यों लीन होता है इससे पृथक तो कोई कोई ही रहते हैं

*बामण था तो वेदे भुला काजी कलम* *गुमाई जोग बिहुंणा* *जोगी भूला मुंडिया अकल* *न काई*

ब्राह्मण वेदों को भूल गए हैं काजी लोग कुरान के ज्ञान से अनभिज्ञ है योगी बिना योग साधना के भूल में भटके रहे हैं और मुँड मुँड़ाने वालों ने भी अक्ल खो दी है

*इहिं कलयुग में दोय जन भुला एक* *पिता एक माई बाप जाणै* *मेरे हलियो टोरै कोहर* *सींचण जाई*

इस कलियुग में गृहस्थ लोग भी माता और पिता दोनों भूल में है बाप सोचता हैं कि बेटा बड़ा होकर हल जोतेगा तथा कुएँ के पानी से खेत सींचेगा कुआँ चलाएगा

*माय जाणै मेरे बहुटल आवै बाजै बिरद* *बधाई म्हे सिम्भू का फुरमाया* *आया बैठा तखत रचाई*

माता समझती है कि बेटा जब बड़ा होगा तो मेरे बहू आएगी विरध बधाई से गीतों सहित बाजे बजेंगे (पुत्र के प्रति माता-पिता की ये कल्पनाएँ मोह और स्वार्थ के ही कारण है )यह संदेश स्वयम्भू परमात्मा से आया है (हमारा यह संदेश है) कि समराथल पर हम आसन मांड कर बैठे हुए हैं

*दोय भूज डंडे परबत तोलां फेरां आपंण* *राई एक पलक में सर्व* *संतोषा जीया जूण सवाई*

यदि हम चाहे तो दोनों भुजाओं से पर्वतों को तोल सकते हैं तथा समस्त संसार में अपनी दूहाई फिर सकते हैं क्षण मात्र में ही हमारे समस्त सृष्टि का और सब जीव योनियों का निर्माण किया है

*जुगां जुगां को जोगी आयो बैठो आसन* *धारी हाली पुछै पाली* *पुछै यह कलि पुछण हारी*

ऐसा में युगों युगों का योगी यहाँ आया हूँ और समराथल पर आसन धारण बैठा हूं लोग चाहे तो मुझसे तत्व ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं किंतु वे ऐसा न कर लौकिक लाभ ही और इतर बातें ही पूछते हैं इस कलियुग में सभी लोग लौकिक बातें ही पूछते हैं हल चलाने वाला किसान अपनी बातें पूछते हैं और पशु चराने वाले पाली अपनी बात पूछते हैं

*थली फिस्तों खिलेरी पुछै मेरी गुमाई* *छाली बांण चहोड़ पारधियो* *पुछे किहिं अवगुण* *चूकै चोट हमारी*

थली में पशु से चराते फिरते खिलेरी
पूछता है कि मेरी बकरी खो गई है वह कब मिलेगी शिकारी बाण चढ़ाकर पूछता है कि हमारा आघात तक किस दोष के कारण चुक जाता है

*रहो रे मूरखां मुग्ध गंवारां करो मजूरी* *पेट भराई है है जायो* *जीव न घाई*

हे मूर्ख हे मूढ़ हे गंवार जीव हत्या करके पेट भरना बंद करो मजदुरी करके पेट भरो हाय जाये जीव को मत मारो

*मेड़ी बैठो राजेन्द्र पूछै स्वामी जी कती* *एक आयु हमारी चाकर* *पुछै ठाकर पूछै ओर पुछै कीर* *कहारी*

मेड़ी में बैठने वाला गढ़पति राजा पूछता है कि हे स्वामी जी हमारी आयु कितनी है ठाकुर चाकर वीर और कहार सभी अपने-अपने सम्बन्ध में पूछते हैं

*सोक दुहागण तेपण पूछै लेले हाथ* *सुपारी बांझ तिरिया बहुतेरी* *पुछै किसी प्रापती म्हारी*

सौत और दुहागिन विधवा स्त्रियाँ पूछती है कि हे स्वामी हमें कैसी प्राप्ति होगी बाँझ स्त्रियाँ भेंट के लिए हाथों में सुपारीयाँ लेकर पूछती है कि हमें संतान प्राप्ति होंगी कि नही होंगी

*त्रेतायुग में हीरा विणज्या द्वापर गऊ* *चराई वृंदावन में बंसी* *बजाई कलियुग चारी छाली*

त्रेतायुग में मैंने राम रूप में हीरो का व्यापार किया था हीरों के समान श्रेष्ठ लोगों का उद्धार किया था द्वापर युग में कृष्ण रूप में गायें चराई थी तथा वृंदावन में बंसी बजाई थी अनेक प्रकार की लीलाएँ कि इस कलियुग में बचपन में मैंने बकरियां चराई है

*नव खेड़ी म्हे आगै खेड़ी दसवें कालंके* *की बारी उत्तम देश* *पसारो मांडयो रमण बैटो जुवारी* *एक खंड बैठा नव खण्ड* *जीता को ऐसा लहो जुवारी*

इससे पूर्व नौ अवतारों के रूप में (कष्ट दमनार्थ साधु रक्षार्थ और भक्त हितार्थ )मैंने नौ युद्ध किए हैं अब दसवें कल्कि अवतार की बारी है उत्तम कार्य स्थल देखकर यहँ मरूभूमि में समराथल पर मैंने अपना खेल रचा है ज्ञानोपदेश का प्रसार किया है (जूआरी जैसे अपने पासों से खेलता है वैसे ही में ज्ञानवाणी रूपी पापों से खेलता हूं )एक स्थान पर बैठे हुए मैंने नवखण्डों को जीता है हे लोगों तुम ऐसे गुरु से ज्ञानोपदेश क्यों ग्रहण नहीं करते हो ?
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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