शब्द -50 ओ३म् तइयां सासूं तइया मासूं, तइया देह दमोई। उतम मध्यम क्यूं जाणिजै, बिबरस देखो लोई।

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

शब्द – ओ३म् तइयां सासूं तइया मासूं, तइया देह दमोई। उतम मध्यम क्यूं जाणिजै, बिबरस देखो लोई।

 

भावार्थ- जब तक योगी की दृष्टि में स्त्री-पुरूष का भेदभाव विद्यमान रहेगा तब तक वह सच्चा योगी सफल योगी नहीं हो सकता। जब तक सर्वत्र एक ज्योति का ही दर्शन करेगा तो फिर भेद दृष्टि कैसी? और यदि भेददृष्टि बनी हुई है तो फिर वह योगी कैसा। इसलिये कहा है-कि जो श्वांस एक पुरूष में चलता है वही स्त्री में भी चलता है तथा जो मांस एक पुरूष के शरीर में है वही स्त्री में भी है और यह पंचभौतिक देह स्त्री पुरूष दोनों की बराबर है तथा जीवात्मा में भी कोई भेद नहीं है। परमात्मा का अंश प्रतिबिम्ब रूप जीव भी सभी का एक ही है। तो फिर अपने को योगी कहते हुऐ भी उतम और मध्यम क्यों जानता है। स्त्री को मध्यम अदर्शनीय क्यों कहता है?हे लोगों! अब आप ही विचार करके देखिये।

जाकै बाद विराम बिरासों, सरसा भेला चालै, ताकै भीतर छोत लकोई।

यह भेद दृष्टि क्यों है? क्योंकि जिस योगी को अब तक व्यर्थ के विवाद द्वारा विजय की लालसा, साधना रहित, निष्क्रिय जीवन जीते हुऐ विषयों में रमण, अपनी प्रसिद्धि और धन के लिये योग का झूठा दिखावा या नाटक करना तथा संशय की निवृत्ति न होना, प्रत्येक विषय में ही रस लेना इत्यादि भूलों में ही जीवन व्यतीत होगा तो उसके भीतर यह भेदभाव, छोटे-बड़े स्त्री-पुरूष अन्दर छुपी हुई रहेगी इस भेद दृष्टि को मिटा नहीं सकता। इसलिये समान दृष्टि के लिये इन ऊपर के एक एक दोषों को बाहर निकालना ही होगा।

जाकै बाद विराम बिरासों सांसो,सरसा भोलो भागो, ताकै मूले छोत न होई।

 

और जिस सच्चे योगी के बाद विराम, विरासों, संशय, सरसपना तथा यह भोलापन मिट जाता है उसके मूल में कभी छोत भेदभाव दृष्टि नहीं हो सकती। तुम्हारे लक्ष्मणनाथ की भेद दृष्टि अब तक निवृत्त नहीं हुई है इसलिये पूर्ण योगी भी नहीं है।

 

दिल दिल आप खुदायबन्द जाग्यो, सब दिल जाग्यो सोई। जो जिंदो हज काबै जाग्यो, थल सिर जाग्यो सोई।

इस समय प्रत्येक दिल रूपी हृदय में वह सोई हुई जीवात्मा जागृत हो गई है उनके सुषुप्त संस्कारों को जागृत कर दिया जाता है तथा उन सोई हुई जीवात्माओं के रूप में वह स्वयं परमेश्वर ही था और अब जागृत होने वाला भी वही परमात्मा ही है। अब ये लोग परमात्मा के समिपस्थ होने से सचेत हो चुके है। इन्हें आप ठग नहीं सकते तथा जो महापुरूष कभी हज काबै में जागृत हुआ था, परमात्मा से साक्षात्कार किया था, वही परमात्मा जागृत होने वाला अब यहां सम्भराथल पर जगाने आया है। इसलिये यह सम्भराथल पर स्थित पुरूष स्वयं जागृत है तथा अनेकानेक लोगों को जागृत किया है।

 

 

नाम विष्णु के मुसकल घातै, ते काफर सैतानी।

विष्णु नाम जपने वालों को जो अड़चन पैदा करता है वे या तो काफिर-नास्तिक है या फिर जोर जबरदस्ती करने वाले शैतान है, ऐसे लोगों से बचकर रहना ही श्रेष्ठ है।

 

 

हिन्दू होय कर तीरथ धोकै, पिण्ड भरावै तेपण रह्या इवाणी। जोगी होय के मूंड मुंडावै, कान चिरावै, गोरख हटड़ी धोकै। तेपण रह्या इवाणी, तुरकी होय हज काबो धोकै, भूला मुसलमानों।

हिन्दू होकर भी जो घर बैठा बैठा ही तीर्थों को धोक लगाता है अर्थात् प्रणाम कर लेता है तथा गयाजी में जाकर मृत्यु के पश्चात् गया जी में परिवार के लोग पिण्ड दान करते हैं उस मृतात्मा को स्वर्ग में भेजना चाहते हैं। ऐसे पाखण्ड में रत होकर फिर भी अपने को हिन्दू कहते हो। ऐसे हिन्दू बनने से तो कोई लाभ नहीं है। वे तो खाली ही रह गये। न तो घर में बैठे हुए तीर्थों की धोक लगाने से लाभ होगा और न ही पिण्ड भराने से ही मुक्ति मिल सकेगी। हिन्दू का कर्तव्य यहीं पर ही समाप्त नहीं हो जाता। तथा योगी होकर भी सिर मुंडा लेते हैं कान चिरवा करके मुद्रा डाल लेते हैं और कोई योगिक साध्धना तो करते नहीं किन्तु गोरख नाथ जी के धूंणें पर ही जाकर पूजा-प्रणाम कर लेते हैं। ऐसे योगी भी भूल में ही है जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। उसी तरह मुसलमान भी हज काबै की ध्धोक लगा लेते हैं। इन तीनों की न तो तीर्थ, गोरख हटड़ी और काबै की हज रक्षा करती। यदि ये ऐसे समझते है तो भारी भूल में है।

 

के के पुरूष अवर जागैला, थल जाग्यो निज बाणी। जिहिं के नादे वेदे शीले शब्दे, लक्षणें अन्त न पारूं। अंजन मांही निरंजन आछै, सो गुरु लक्ष्मण कंवारूं।

इस धरती पर कई तरह के और भी पुरूष जागेंगे। उनका जागृत होने का अपना एक भिन्न ही तरीका होगा वह तो भविष्य ही बतायेगा। यह जागृत होने की धारा सदा ही चली आई है। उसी प्रवाह में ही इस सम्भराथल पर अपनी सबदवाणी के सहित गुरु जाम्भोजी कहते है कि मैं आया हूं। अन्य अवतारी पुरूषों में तो कोई एक विशेषता रही होगी किन्तु इस समय सम्भराथल पुरूष के तो इस वाणी में विशेषतः अनहद

अनहद नाद विद्या का बखान, वेद के विस्तृत ज्ञान की चर्चा शीलता, नम्रता आदि गुणों का, नाद विद्या का बखान इत्यादि सुन्दर लक्षणों का अन्त पार ही नहीं है तथा जैसा भी मैं शब्दों द्वारा बखान करता हूं। वह मेरा अपना निजि अनुभव ही है। प्रथम तो मैं किसी बात को अनुभव रूपी तराजू से तोलता हूं, फिर दूसरों को कहता हूं। मुझे इन गुणों को धारण करने में कोई कठिनाई भी नहीं होती क्योंकि इस शरीर रूपी अंजन माया में ही वह निरंजन माया रहित ज्योति ही प्रकाशित है इसलिये मैं ही वही लक्ष्मण कुमार हूं जो विष्णु के अंश रूप से अवतार प्रसिद्ध है तथा हे आयस्! इन सद्गुणों से विभूषित ही लक्ष्मण कुमार हो सकता है।

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *