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ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।
भावार्थ- यदि कोई तीर्थों में जाकर करोड़ों गउवों का दान कर दे तथा किसी अधिकारी अनधिकारी को पांच लाख से भी अधिक घोड़ों का दान कर दे या अन्नादि खाद्य वस्तु, स्वर्ण ,अलंकार सामान्य ऊनी वस्त्र एवं कीमती रेशमी वस्त्रों का भी दान कर दे और सामान्य हाथी तथा हौंदा आदि से सुसज्जित करके भी अत्यधिक दान कर दे तो भी (ताथै सभ सीरि सील सिनानूं) सबसे श्रेष्ठ तो शील, धर्म स्नान, हवन, जप आदि ही है। अभिमान सहित किया हुआ अत्यधिक दान भी जन्म मृत्यु से नहीं छुड़ा सकता। (हुई का फल लीयूं)।
करण दधीच सिंवर बल राजा, श्री राम ज्यूं बहुत करै आचारूं। कर्ण, दधीची , शिवि तथा बलि राजा ये सभी महान दानी थे। आप लोग तो उनकी तुलना कभी नहीं कर सकते। वे भी अपने कर्मों के सीमित फल को ही प्राप्त कर सके थे। उन्होंने भी दान के बल पर श्री राम जैसा महान बनने का प्रयत्न किया था किन्तु केवल दान के बल पर तो विश्व की सम्पूर्ण कीर्ति हासिल नहीं की जा सकती। राम तो तभी हो सकते हो यदि राम की तरह सम्पूर्ण धर्मों के अंगों सहित धर्म का आचरण करोगे।
जां जां बाद विवादी अति अहंकारी, लबद सवादी। कृष्ण चरित बिन, नाहि उतरिबा पारूं।
जब तक व्यर्थ का वाद विवाद करने की चेष्टा है। अत्यधिक अहंकारी होकर लोभी तथा हठी हो गया है। तब तक चाहे कितना ही दान दिया जाय वह लक्ष्य तक तो नहीं पहुंच सकता। परम गति की प्राप्ति के लिये तो अपने जीवन में कृष्ण परमात्मा के दिव्य चरित्र को अपनाना होगा, बिना कृष्ण चरित्र के कभी भी पार नहीं उतर सकता, यानि जन्म मरण के चक्र से नहीं छूट सकता।
साभार – जंभसागर
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