सबद-13 :: ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं।

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ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं।

भावार्थ- रे मूर्ख! तुमने इस अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ में ही व्यतीत क्यों कर दिया। यह तुम्हारे हाथ से निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आयेगा। इस संसार में रहकर भी तुमने चोरी , जारी,निंदा,झूठ आदि पापों की पोटली ही बांधी है। जब इस संसार में आया था तो काफी हल्का था,निष्पाप था। किन्तु यहां आकर इन पापों की पोटली से स्वयं ही बोझ से दब रहा है और इस धरती को भी भार से बोझिल बना दिया।

जां दिन तेरे होम नै जाप नै, तप नै किरिया। गुरु नै चीन्हौं पन्थ न पायो, अहल गई जमवारूं।
उन दिनों में जब तूं स्वस्थ था तथा अमावस्यादि पवित्र दिन थे। उन दिनों में तुम्हें हवन-जप आराध्धना तपस्या तथा शुद्ध सात्विक क्रियायें करनी चाहिये थी। इस संसार में रहते हुऐ तुझे गुरु की पहचान करके उनसे सम्बन्ध स्थापित करना था तथा उन सद्गुरु से प्रार्थना करके सद्मार्ग के बारे में पूछकर उन पर चलने का प्रयत्न करना चाहिये था। यह शुभ कार्य तुमने नहीं किया तो तेरा जन्म व्यर्थ ही चला गया।

ताती बेला ताव न जाग्यो, ठाढ़ी बेला ठारूं। बिंम्बै बैला विष्णु न जंप्यो, तातै बहुत भई कसवारूं।

प्रत्येक दिन में तीन बेला आती है प्रातः, दुपहरी और सांय ठण्डी बेला। उसी प्रकार से मानव जीवन की भी बाल्यावस्था यह बिम्बै बैला है। युवावस्था यह ताती बेला है क्योंकि जवानी का खून गर्म होता है और वृद्धावस्था यह ठण्डी बेला है, यह अन्तिम अवस्था है इसमें तेज मंद हो जाता है। हे प्राणी! इन तीनों अवस्थाओं में तुमने भगवान विष्णु का भजन नहीं किया तो बहुत ही बड़ी कमी रह गयी। अपने जीवन को सफल नहीं कर पाया इससे बढ़कर और ज्यादा हानि क्या हो सकती है।

खरी न खाटी देह बिणाठी, थीर न पवना पारूं।
शुभ कर्तव्य कर्म तो तूने किया नहीं वैसे ही आल-जंजाल में फंसा रहा। इस उहा-पोह में तेरे शरीर की आयु व्यतीत हो गयी क्योंकि इस संसार में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। पवन, पानी , तेज, पृथ्वी आदि सभी का समय निश्चित है इसलिये तेरा श्वांस भी स्थिर कैसे हो सकता है।

अहनिश आव घटंती जावै, तेरे श्वांस सबी कसवारूं।
दिन और रात्रि करके तुम्हारी यह सीमित आयु घटती जा रही है। तुम दिनोंदिन छोटा होता जा रहा है। ये तेरे प्रत्येक श्वांस बड़े कीमती है। एक एक श्वांस का मूल्य चुकाया नहीं जा सकता।

जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते नर कुबरण कालूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते नगरे कीर कहारूं।

जिस मानव ने परमपिता परमेश्वर अवतार धारी सर्व जन पालन-पोषण कर्ता भगवान विष्णु का जप नहीं किया वह चाहे भले ही मृत्यु के उपरांत दूसरे जन्म में मानव योनि को प्राप्त कर ले किन्तु वह अच्छा सुस्वस्थ मानव कदापि नहीं हो सकता। उसे किसी दुखी परिवार में जन्म लेना पड़ेगा। वह काले रंग का दुष्ट प्रकृति वाला ही होगा या नगर में रहकर दिन भर गध्धे की तरह भार उठायेगा। मानव शरीर तो प्राप्त हुआ किन्तु विष्णु कृपा विना पवित्र श्रीमानों के घर पर जन्म मिलना अति दुर्लभ है।

जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते कांध सहै दुख भारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते घण तण करै अहारूं।
जिस प्राणी ने सर्वत्र व्यापक भगवान विष्णु का जप नहीं किया वह जन्मान्तर में कंध्धे पर भार उठाने वाला शरीर प्राप्त करेगा तथा अत्यध्धिक भोजन करने वाला शरीर जो कभी पेट भी भरता नहीं जो सदा भूखे रहने वाले पशु पक्षी या मानव शरीर को ध्धारण करेगा।

जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ताको लोही मांस विकारूं |
जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, गावै गाडर सहरै सुवर जन्म जन्म अवतारूं।
जिस प्राणी ने मानव शरीर धारण करके हरिनारायण विष्णु की सेवा पूजन तन – मन- धन से नहीं किया उसके लोही, मांस में सदा विकार पैदा होगा अर्थात् सदा ही रोगी रहेगा और दूसरे जन्म में गांवों में गाडर भेड़ का जन्म होगा तथा शहरों में सुवर का जन्म ध्धारण करना पड़ेगा जिसे सदा ही दुख झेलना पड़ेगा।

जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो,ओडा के घर पोहण होयसी,पीठ सहै दुख भारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, राने वासो मोनी बैसे ढ़ूकै सूर सवारूं।

मानव शरीर धारी को स्वकीय मूल स्वरूप देवाध्धिदेव विष्णु परमात्मा की प्राप्ति के लिये उन्हीं परम सत्ता से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिये। सम्बन्ध स्थापित करने का प्रमुख साधन विष्णु का नाम स्मरण ही है, , यदि कोई ऐसा नहीं कर पाता है तो वह जन्मों जन्मों में गध्धे का जीवन ध्धारण करके अपने मालिक ओड जाति के यहां पर भार उठाना पड़ेगा। या फिर डोड- गृध्ध पक्षी का रूप ध्धारण करके रात्रि में तो कहीं आहार के लिये जा नहीं सकेगा भूखे ही रात्रि व्यतीत करेगा प्रातःकाल ही मौन रहकर गंदगी में अपना भोजन प्राप्त करेगा।

जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते अचल उठावत भारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते न उतरिबा पारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते नर दौरे घुप अंधारूं।

जिस पंचभौतिक शरीर ध्धारी आत्मा रूप मानव ने अनन्त अवतारध्धारी भगवान विष्णु को हृदयस्थ नहीं किया उन्हें चैरासी लाख जीया जूणी रूपी अचल भार उठाना पड़ेगा। वह संसार सागर के दुखों से पार तो नहीं हो सकता और बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त हुआ कठिन अन्ध्धकार मय भयंकर नरक में गिरेगा।

तातै तंत न मंत न जड़ी न बूंटी, ऊंडी पड़ी पहारूं। विष्णु न दोष किसो रे प्राणी, तेरी करणी का उपकारूं।
इसलिये इन दुखमय योनियों से छूटने के लिये न तो कोई तंत्र है न ही कोई मंत्र है न ही कोई जड़ी या बूंटी ही है। इनसे छूटने का मात्र एक उपाय केवल भगवान विष्णु ही है वही तुम्हें छुड़ा सकता है। यदि वह अवसर चला गया तो फिर लौटकर नहीं आयेगा। बहुत दूर चैरासी लाख पर चला जायेगा। फिर कभी भूलकर विष्णु को दोष नहीं देना। प्रायः लोगों को जब कष्ट आता है तो भगवान को दोष देते है। हे प्राणी! तूं ऐसा कभी मत करना। ये सुख दुख तो तेरे कर्मों का ही फल है। बीज तो मानव स्वयं ही बोता है पर बीजों को फूलने फलने में सहायता भगवान स्वयं करते है इसलिये जैसा बीज बोवोगे फल भी तो वैसा ही होगा। तो फिर स्वयं का दोष दूसरों के उपर क्यों डालता है।
साभार – जंभसागर

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Sanjeev Moga
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