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*एक दुःख वखमण बंधू हईयौं*
श्री जाम्भोजी महाराज के जमाती भक्तजनों में महापुरुषों के जीवन में आने वाले संसारिक दुःख की चर्चा चल रही थी। भक्तजनों ने जब गुरु महाराज से इस संबंध में जानना चाहा तब श्री जम्भेश्वर भगवान ने त्रेतायुग में रामावतार के समय राम पर पड़ने वाले दुःख का उदाहरण देते हुए समझाया कि संसार में दुःख है और अवतारी पुरुष भी जब मानववोचित व्यवहार करते हैं, तब उन्हें भी दुःख में व्यथित होते हुए देखा गया है।इसी संदर्भ में लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने, उनके मूर्छित होने और उस समय राम की पीड़ाओं का वर्णन करते हुए गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
*एक दुःख लक्ष्मण बंधू हइयों*
इस संसार में अनेक दुःख है। अपने प्रिय जन के वियोग की पीड़ा कितनी दुःखदाई है ?इसका एक उदाहरण राम रावण युद्ध के समय लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम के हृदय में पीड़ा का है।
*एक दुःख बूढे पर तरणी अइयों*
कई बार संयोग एवं अनचाहत का मिलन भी कितना दुःखदाई हो सकता है।इसकी अनुभूति एक बूढ़े अशक्त पुरुष से विवाहित नवयोवना तरुण स्त्री की ही हो सकती है।
*एक दुःख बालक की मां मुइयो*
परवशता एवं विवशता का दुःख कितना घनीभूत होता है,इसका अनुमान उस नवजात शिशु की तड़पन से लगाया जा सकता है, जिसकी माँ मर गई है। वह शिशु न तो कुछ बोल सकता है न समझ सकता है। केवल रो सकता है।
*एक दुख औछे को जमवारूं*
*एक दूख तुटै से व्यवहारूं तेरे लखणे* *अतं न पारूं*
अति अल्प आयु पाने वालों द्वारा बार-बार जन्मने और मरने का दुख भी कम पीड़ा दाई नहीं होता। ऐसे ही सांसारिक दुःखों में एक दुःख,निमन्वृत्ति के ओछे एवं निर्धन व्यक्ति के साथ लेन-देन का व्यवहार करने में भी होता है।
*सहै न शक्तिभारूं कै तैं परसुराम का* *धनुष जे पइयों*
राम कह रहे हैं कि हे लक्ष्मण! तुम्हारे मूर्छित होने पर हमें जो दुःख हो रहा है उस का कोई पार नहीं,हमें अपार पीड़ा हो रही है। इस भारी दुःख को हम अपनी संपूर्ण शक्ति से सहन करने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं।कहाँ तो एक तरफ तूने धनुष-यज्ञ के समय,परशुराम के सामने,अपनी वीरता एवं साहस को प्रकट किया था ।
*कैं तैं दाव कुदाव न जाण्यो भइयूं*
दूसरी ओर हे भाई!क्या तुमने राक्षसों के दाँव-पेचों को नहीं समझा कि तुम यो मूर्छित हो गये?
*लक्ष्मण बाण जे दहशिर हइयों*
हे लक्ष्मण!तुम्हारे बाण से तो दसशीश रावण का वध होना था।
*एतो झूंझ हमें नही जाण्यों*
हमने यह नहीं सोचा था कि युद्ध का परिणाम इतना घातक होगा।
*जे कोई जाणे हमारा नाऊं*
*तो लक्ष्मण ले बेकुण्ठे आऊं*
हे लक्ष्मण!जो कोई हमारे नाम के रहस्य को जानता है,जो हमारा नाम ले लेता है, तो हम उसे बैकुंठ धाम में स्थान देते हैं।
*तो बिन ऊभा पह प्रधानों*
राम विलाप करते हुए कहते हैं कि हे लक्ष्मण!तुम्हारे मूर्छित होने पर युद्ध रुक गया है।हमारी सेना के ये सब प्रधान सेनापति तुम्हारे दुःख में यहाँ खड़े हैं।
*तो बिन सुना त्रिभूवन थाणौं*
तुम्हारे बिना, हमारे लिए तो ये तीनों लोक सुने हैं।
*कहा हुआ जे लंका लइयों कहा हुओ जे रावण हइयों कहा हुओ* *जे सीता आइयों*
क्या हुआ यदि रावण को मार कर लंका को जित लिया। क्या हुआ यदि सीता वापिस हमारे पास आ गई।
*कहा करूं गुणवन्ता भइयों खल के* *साटै हीरा गइयों*
हे लक्ष्मण!तुम्हारे जैसा गुणवान भाई खोने के बाद,युद्ध जीतना, रावण को मारना और सीता को वापस ले आना,खल के बदले हीरा देने के समान है।अर्थात लक्ष्मण के बिना राम के लिए युद्ध जीतना, रावण को मारना ,सीता को लौटा लाना ये सब उपलब्धियाँ व्यर्थ है।भाई तो भाई ही होता है। उसकी किसी से क्या बराबरी। भाई के वियोग का दुख।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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