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*तउवा माण दुरर्योधन माण्यां*
गुरु जंभेश्वर द्वारा पूर्व शब्द का सुनकर जमाती लोगों के मन में यह संदेह उत्पन्न हुआ कि क्या इस संसार से पार होना इतना कठिन है उन्होंने गुरु महाराज से जिज्ञासा प्रकट की कि क्या चार युगों में इस जन्म मरण के चक्कर से कोई जीव मुक्त हुआ है या नहीं?भक्त-जनों की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
*तउवा माण दुर्धोधन माणया अवर भी माणत माणु*

राज्य एवं धन दौलत के कारण मान सम्मान पाने वाले तथा अपने पर अभिमान करने वाले तो इस संसार में और भी हुए हैं,परंतु हस्तिनापुर के राजा दुर्योधन के सम्मान कोई और इतना अभिमानी नहीं हुआ।

*तउवा दान जु कृष्णी माया अवर भी फूलत दानों*

अन्य दाताओं द्वारा दिया गया दान भी फूलता-फलता है,परंतु भगवान कृष्ण द्वारा प्रदत्त दान की जो माया महिमा फूलती फलती है, उसकी बराबरी और कोई नहीं कर सकता।

*तउवा जांण जु संहसर झुंझया ओर* *भी झुझत जाणों*

अन्य योद्धा भी जानबूझकर युद्ध करते हैं,परंतु जिस प्रकार सहस्त्रार्जुन ने कामधेनु को प्राप्त करने के लिए जमदग्नि ऋषि से जानते बूझते युद्ध किया, वह अपने आप में अनोखा था।

*तउवा बाणु जु सीता कारण लक्ष्मण खैंच्या अवर भी खैंचत बाणों*

अन्याय का प्रतिकार करने एवं अपने हितों की रक्षार्थ अन्य वीर योद्धा भी बाण चलाते हैं परंतु सीता को रावण से छुड़ाने हेतु जिस प्रकार लक्ष्मण ने धुआंधार बाणों की वर्षा की, उसकी कोई बराबरी नहीं है।

*जपी तपी तक पीर ऋषीश्वर सांवत* *सुर बांणालौ जोधा महारथी* *बलाक्रंमी जोयबा तोल* *रहया शै ताणों*

सीता स्वयंवर के समय अनेक योगियों,तपस्वियो,तकियावासी पीरों एवं ऋषिवरों की साक्षी में बड़े-बड़े बलशाली योद्धाओं ने अपने बल के अहंकार मे भर कर शिव धनुष की प्रत्यंचा खींचने में अपनी शक्ति अजमाई, परंतु वे उसे नहीं खेच सके।

*तिण किण खैंच न सके शिभूं तणी कमाणु*

वे सब के सब पराजित हुए,क्योंकि उन्होंने अपने अभिमान में भरकर बिना गुरु ज्ञान के मन मुखी होकर अपनी मनमर्जी से अपने शरीर का बल लगाया।अतः वे अपने कार्य में असफल रहे।

*तेऊ पार पहुंता नाही ते कीयो आपो भाणो*

ऐसे लोग जो अपनी इच्छा से अपनी लालसा वश कार्य करते हैं,वे संसार सागर से पार नहीं पहुंच सकते।

*तेऊ पार पहुंता नाही ताकी धोती रही असमाणो*

ऐसे तांत्रिक जो अपनी सिद्धि के बल पर अपनी धोती आसमान में अधर सुखाते हैं, वे भी अभिमान के कारण मुक्ति नहीं पा सके।

*बारा काजै हरकत आई अध बिच मांडयो* *थाणों*

इस संसार सागर से पार होना बहुत कठिन है।जिसने भी अभिमान किया वह डूब गया। इसलिए अपने वचन के पालन हेतु बारह करोड़ प्रहलाद पंथी जीवों के उद्धार के लिए मुझे सक्रिय होना पड़ा तथा इसलिए मैंने धरती के बीचो-बीच इस पावन भूमि मरुस्थल के मध्य अपना आसन लगाया है।

*नारसिंह नर नराज नरवों सुराज सुरवो* *नरां नरपति सुरां सुरपति* *ज्ञान न रिंदो बहुगुण* *चिंदों*

सतयुग में अपने भक्त पहलाद के लिए मुक्ति के लिए भगवान विष्णु न तो मनुष्य के रूप में और न ही मृगराज सिंह के रूप में,बल्कि आधानर और आधासिंह अर्थात नरसिंह रूप में अवतरित हुए।वे नरसिंह भगवान, देवलोक के देव, नरों में नरपति,देवताओं के स्वामी, ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ तथा अपार गुणों के ज्ञाता थे।

*पहलू प्रहलादा आप पतलियो दूजा काजै काम बिठलियो*

सर्वप्रथम भक्त प्रह्लाद ने अपना विश्वास कायम रखा तथा अपनी सच्ची आस्था के बल पर वे मुक्ति को प्राप्त हुए। परंतु प्रह्लाद के साथी दूसरे 33 करोड़ जीवो के उद्धार करने के कार्य में बाधा आ गई।कारण,कर्मफल के सिद्धान्तानुसार संस्कारित हो कर, शुभ कर्म किए बिना कोई जीव इस संसार से पार नहीं जा सकता

*खेत मुगत ले पंच करोड़ी सो प्रहलादा गुरु की वाचा बहियों*

अतः गुरु वचनों के अनुसार शुभ कर्म करते हुए अपने आचरण के बल से तथा गुरु कृपा से पाँच करोड जीवो को भक्त प्रल्हाद अपने साथ लेकर बैकुंठ धाम पहुंचे तथा वे सब बैकुंठ वासी बन गये।

*ताका शिखर अपारुं तांको तो बेकुण्ठे वासो रतन काया दे सोंप्या छलत भंडारु* *तेऊ उरवारे थाणों अई अमाणो तत समाणो बहु परवाणों पार पहुचण हारा*

जिन्होंने इस संसार में रहकर अपार अच्छाइयाँ अर्जित की वे ही बैकुंठ में बास करते हैं और परमात्मा ने उन्हें दिव्य शरीर देकर सुख और आनंद के अक्षण भंडार सौंपे एवं जिसने भी अहंकार त्यागकर तत्व ज्ञान की प्राप्ति कि, वे सब इस संसार सागर से पार पहुँच गये और इसके असंख्य प्रमाण मौजूद हैं।

*लंका के नर शूर संग्रामे घणा विरामें* *काले काने भला तिकंट*

त्रेतायुग में लंका के बहुत से वीर युद्ध क्षेत्र में मारे गए।उनमें कई काले कलूटे, कई एक आँख वाले, कई तिकोने, टेढ़े मेढ़े शरीर वाले अखण्ड राक्षस योद्धा,पहले राम की सेना से युद्ध करते हुए मारे गये।

*पहलै जूंझया बाबर झंट पडै ताल संमदा* *पारी तेऊ हइया लंका* *दवारी*

वे लोग जो समुद्र पार,लंका के मैदान में,लंका द्वार की रक्षा करते हुए राम की सेना द्वारा मारे गये।

*खेत मुगत ले सात करोड़ी परशुराम के हुक्म जे मुवा से तो विसन पियारा ताको तो बेकुण्ठे बासो*

ऐसे वे सात करोड़ जीव, जो राम रावण युद्ध में राम की सेना द्वारा मारे गये,वे सब मुक्ति को प्राप्त हुए।ऐसे रामाज्ञा से मारे जाने वाले समस्त जीव भगवान विष्णु को अति प्रिय हुए।

*रतन काया दे सोप्या छलत भंडारु तेऊ तो उरवारे थाणो अई अमाणो पार पहुचण हारा*

उनका बैकुंठ में वास हुआ तथा उन्हें दिव्य देह देकर सुख और आनंद से भरे हुए अक्षय भंडार सौपे गये। उनका बैकुंठ में नित्य निवास हो गया। जो भी कोई जीव अंहकार भाव से रहित होकर अपने नियमित कार्य कर्तव्य का पालन करता है वह निश्चित रूप से इस संसार सागर से पार पहुँच जाता है।

*काफर खानो बुद्धि भराड़ों खेत मुगत ले नव करोड़ी राव युधिष्ठिर*

द्वापर युग में कुछ ऐसे नास्तिक और भ्रष्ट बुद्धि के लोग भी गुरु ज्ञान की राह पकड़ कर अपने कर्तव्य पालन के बल पर धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में बैकुंठ धाम पहुँचे।

*सेतो कृष्ण पियारा तां को तो बेकुण्ठे वासो*
*रतन काया दे सोंप्या छलत भंडारु*

ऐसे वे नव करोड़ जीव, भगवान विष्णु के अति प्रिय हुए। उन सबका बैकुंठ निवास है।उन्हें नित्य देह देकर सुख और आनंद से भरे हुए अपार भंडार सोंपे गये।वे सब मोक्ष को प्राप्त हुए हैं।

*तेऊ तो उरवारे थाणो अई अमाणो बहु परमाणो पार पहुचन हारा*

उनका स्थाई निवास बैकुंठ धाम में हो गया है। इस बात के अनेक प्रमाण है कि,जिसने भी अहंकार भाव को त्यागकर शुभ कर्म किए,अपने कर्तव्यों का पालन किया,वे इस जन्म-मरण के चक्कर से छूटकर संसार सागर से पार पहुंचे हैं।

*बारा काजै हरकत आई ताथै बहुत भई कसवारू*

शेष बारह करोड़ प्रहलाद पंथी जीव,जिन्होंने अपने पूर्व जन्मों में बहुत अधिक कसूर किए थे,उन के उद्धार हेतु परम चेतना परमेश्वर,मेरे माध्यम से सक्रिय होकर इस कलयुग में प्रकट हुए हैं।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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