शब्द नं 97

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विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी
एक समय गंगा पार के विश्नोई गुरु जंभेश्वर के पास समराथल आ रहे थे। उन्होंने रोटू के पास मांगलोद गांव के किनारे एक सरोवर के पास विश्राम किया। वहीं एक माता जी का प्रसिद्ध मंदिर था। मंदिर का पुजारी ऊदा नामक एक प्रसिद्ध देवी भक्त था। देवी उसके मुख बोलती थी। ऊदे ने बिश्नोईयों से कहा कि वे समराथल जाकर क्या लायेंगे? उनकी मनोकामना तो देवी ही पूर्ण कर देगी।बिश्नोईयों ने कहाकि वे तो मोक्ष की कामना से गुरु जंभेश्वर के पास जा रहे हैं। यदि देवी उनकी मनोकामना पूरी कर दे तो ऊदा देवी से पूछ लें।जब ऊदे ने अपनी साधना शक्ति से देवी को प्रसन्न कर, उनसे बिश्नोईयों को मोक्ष देने की बात कही तब देवी ने उसे उत्तर दिया कि वह तो केवल सांसारिक एवं शारीरिक पीड़ाएँ ही मिटा सकती है।मोक्ष देना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। देवी की शक्ति की सीमा जानकर ऊदा बिश्नोईयों के साथ मोक्ष की कामना से गुरु जंभेश्वर के पास समराथल पर आया और गुरुदेव के चरणों में नमन कर उनसे अपनी मुक्ति की इच्छा प्रकट की।ऊदे की मनोकामना जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
विसन विसन तुं भण रै पिराणी जो मन माने रे भाई

हे प्राणी! तुम निरंतर विष्णु नाम का जाप कर। हे भाई! यदि तुम्हारा मन इस बात को मानता है, तुम्हारे मन में दृढ़ संकल्प है, तभी तुम्हारा श्रम सार्थक होगा।

दिन का भुला रात न चेता कांय पड़ा सुता आस किसी मन थाई

तुमने अपना बालपन,जवानी, जो तुम्हारे जीवन का प्रकाशमय दिन था। उसको तो तुम माया मोह में पड़कर देवी उपासना में भूलकर बिता चुके। अब यह बुढ़ापा तुम्हारे जीवन की रात्रि है। इसको भी यदि तूने अज्ञान में सो कर बिता दिया तो समझना,तुम्हारा यह मानव जीवन व्यर्थ ही चला गया। जरा सोच विचार कर देखो। तुम्हारे इस जीवन का क्या लक्ष्य था और तूने क्या पाया तथा क्या पाने की आशा कर रहे हो?

तेरी कुड़ काची लगवाड़ घणो छै कुशल किसी मन भाई

हे भाई! तुम्हारा यह शरीर नाशवान है। कच्चे घड़े की तरह है। कहीं थोड़ी सी टक्कर लगी और खत्म!तुमने इस शरीर में रहकर अनेक माया मोह के बंधन बाँध लिए हैं, ऐसे में तुम्हारा भला, तुम्हारा कल्याण कैसे होगा।

हिरदे नाम विसन को जंपो हाथे करो टवाई

अब तो एक ही रास्ता है कि अपने हृदय में निरंतर विष्णु नाम का जाप करो और अपने हाथों से दैनिक कार्य व प्राणी मात्र की सेवा करो यही एक मात्र मुक्ति का साधन हैं।

हरिपर हर की आण न मानी भूला भुल जपी महमाई

हे प्राणी!आज तक तुम परमात्मा की भक्ति एवं उसकी मान-मर्यादा को भुलाकर केवल देवी का जाप करते रहे और वह भी पत्थर की मूर्ति को देवी समझ कर भ्रम में पड़े रहे।

पाहण प्रीत फिटाकर प्राणी गुरु बिन मुक्त न जाई

अब भी समय है प्राणी! पत्थर से प्रेम करना छोड़ो। बिना गुरु ज्ञान के कोई मुक्त नहीं हो सकता। केवल गुरु कृपा एवं गुरु द्वारा बताए रास्ते पर चलकर ही आज तक इस संसार में अनेक प्राणी मुक्ति को प्राप्त हुए हैं।

पंच क्रोडी ले प्रहलादो उतरियो।जिन खरतर करी कमाई।

भक्त प्रह्लाद ने अपनी भक्ति एवं शुभ कर्मों के बल पर इस संसार में पांच करोड़ अपने साथियों सहित मुक्ति प्राप्त की।

सात क्रोडी ले राजा हरिश्चंद्र उतरियो।तारादे रोहिताश हरिश्चंद्र हाटोहाट बिकाई

इसी प्रकार राजा हरिश्चंद्र अपनी रानी तारा देवी एवं पुत्र रोहिताश समेत काशी के बाजार में बिक गया, परंतु अपने सत् को नहीं छोड़ा। परमेश्वर की भक्ति पर दृढ़ रहा।जिसके फलस्वरूप सात करोड़ ईश्वर भक्तों को अपने साथ लेकर इस संसार चक्कर से मुक्त हुआ।

नव क्रोडी ले राव युधिष्ठिर उतरियो।धन धन कुन्ती माई।

माता कुंती तथा उसका पुत्र युधिष्ठिर धन्य है, जिन्होंने सच्चाई एवं धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपने साथ नव करोड़ प्राणियों को लेकर इस जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति पाई।

बारा क्रोडी समाहन आयो।प्रहलादा सूं वाचा कवलजु थाई

हे भक्त! मैंने सतयुग में अपने भक्त प्रह्लाद से उसके साथी तैतीस करोड़ जीवो को मुक्ति देने का वचन दिया था। उसी वचन के पालनार्थ में शैष बारह करोड़ जीवो का उद्धार करने हेतु समराथल क्षेत्र में अवतरित हुआ हूँ।पाँच करोड़ प्रह्लाद के साथ, सात करोड़ हरिश्चंद्र के साथ, तथा नव करोड युधिष्ठिर के साथ जो जीव मुक्त हुए हैं,वे उन्हीं तैतीस करोड़ में से थे।

किसकी नारी बस्त पियारी।किसका बहिनरु भाई।

हम यहां विष्णु भगत जीवो का उद्धार करने आये हैं। कौन किस की स्त्री है? कौन किसका पति है? किस की ये प्यारी वस्तुएँ है? ये बहन-भाई,स्त्री पुरुष, धन दौलत किसी के नहीं है। यह धन-दौलत और नाते रिश्ते सब झूठे हैं।

भूली दुनियां मर मर जावै।ना चीन्हों सुरराई।पाहण नाऊं लोहा सक्ता।नुगरा चीन्हत कांई

इस दुनिया के लोग अज्ञान एवं मोह में पड़कर सच्चाई को भूल गए हैं।परमेश्वर को नहीं पहचानते। ऐसे अज्ञानी लोग, पत्थरों की बनी मूर्तियों की पूजा करते हैं। चाहे वह पत्थर की हो या उससे भी सख्त लोहे की बनी हुई हो, बिना गुरु ज्ञान के निगुरे लोग परमात्मा के सत्य स्वरूप को नहीं पहचानते और व्यर्थ ही अपना जीवन गवा देते हैं।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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