शब्द नं 94

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सहस्त्र नाम साई भल शिंभू
जोधपुर के राव मालदेव ने श्री जंभेश्वर महाराज से प्रसन्न किया कि आदि देव परमात्मा के कितने नाम हैं?वह किन-किन नामों से जाना जाता है? रावजी की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
सहस्र नाम सांई भल सिंभु म्हे उपना आदि मुरारी

हें जिज्ञासु! आदि देव परमात्मा के हजारों नाम है। वह सब का स्वामी है। उस मुरारी को किसी ने नहीं बनाया, वह स्वयं अपने आप उत्पन्न हुआ है। वही आदि विष्णु स्वयं,हमारे रूप में यहाँ भाषित हो रहा है।

जद म्हें रह्यो निरालंभ होकर उपपति धंधुकारी

जब यह समस्त संसार इस रूप में प्रकट नहीं था, केवल चारो और अंधेरा ही अंधेरा था। सर्वत्र धुंध ही धुंध समाई हुई थी।तब हम केवल अपने स्वरूप में समाहित होकर आत्मलीन थे।उसी शून्य में से हम उत्पन्न हुए।

ना मेरे मायन ना बापन मैं अपनी काया आप संवारी

हमारे कोई माता-पिता नहीं है। इस शरीर को हमने अपने आप रचा है।

जुग छतीसों सुन्यहि बरत्या सतजुग मांही सिरजी सारी

छतीस युगों तक हम उस महाशुन्य में निरावलम्ब होकर रहे। इस समस्त सृष्टि की रचना हमने सतयुग में की।

ब्रह्मा इन्द्र विसन महारूद्र सकल जग थरप्या दीन्हीं करामात केती वारी

ब्रह्मा इन्द्र विष्णु महारुद्र (शिव )त्रिदेवों की स्थापना की तथा कितनी ही बार विभिन्न रूपों में अवतार लेकर अदभुत कार्य किए।

चांद सुरज दोय साक्षी थरप्या पवन पवनेश्वर पवन अधारी

चंद्रमा और सूर्य को संसार के साक्षी रूप में बनाया तथा जल वायु और आकाश का निर्माण किया।

तद म्हे रूप कीयो मैनावतियों सत्यव्रत को ज्ञान उचारी

तब सत्ययुग में मैंने मत्स्य रूप में अवतार लेकर शंखासुर को मारा जो वेदों को समुन्द्र में डूबोना चाहता था तथा सत्यव्रत को द्रविड़ेश्वर की राज्य सत्ता सौंपी तथा उसको ज्ञानोपदेश दिया।

तद म्हे रुप रच्चो कामठियों तेतीसों को क्रोड़ हंकारी

पुनः हमनें दुसरे अवतार में कच्छप रूप में तेतीस कोटी देवों को एकत्र करवाया और उनसे दानवों के साथ समुद्र मंथन करवा कर देवताओं के स्वाभिमान की रक्षा की।

जद म्हे रूप धरयो वाराही पृथिवी दाढ़ चढाई सारी

तीसरी बार हम वराह रूप धारण करके हिरण्याक्ष को मारा और पृथ्वी को दाढ़ पर धारण कर उसका उद्धार किया।

नरसिंह रूप धर हिरणाकुस मारयो पहराजो रहियो शरण हमारी

चौथी बार हमनें नृसिंह रूप धारण करके मैंने हिरण्यकश्यपु का वध किया तथा प्रहलाद को अपनी शरण में लिया।

बावन होय बलिराज चिताओं तीन पैड कीवि धरसारी

पाँचवीं बार हमनें वामन अवतार लेकर राजा बलि को चेताया और सारी पृथ्वी को तीन डगों से नाप लिया।

परसूराम होय क्षत्रियपन साध्यों गर्भ न छूटो नारी

छठी बार परशुराम के रूप में मैंने क्षत्रिय राजाओं का संहार किया और स्त्रियों के गर्भ में पलने वाले क्षत्रियों को भी नहीं छोड़ा।समस्त पृथ्वी को क्षत्रिय हीन बना दिया।

श्रीराम सिर मुकुट बंधायों सीता के आहंकारी

हमनें ही अपने सातवें अवतार मैं श्रीराम के सिर पर सीता की मनोइच्छा जान वरमुकुट बंधवाया और स्वयं अपने ही रूप के सम्मुख नतमस्तक हुए।

कन्हड़ होयकर बंसी बजाई गऊ चराई धरती छेदी काली नाथ्यौ मेर अघारयौ असूर मार किया क्षयकारी

आठवीं बार हमने कृष्ण के रूप में अवतरित होकर नंद के घर गाय चराई, वृंदावन में बांसुरी बजाई, धरती का छेदन कर बासुकी नाग के नाक में नाथ डाल कर उसे वश में किया। उस समय हमने अनेक राक्षसों को मार कर इस संसार को सुखः पहुँचाया।

बुद्ध रूप गयासुर मारयो काफर मार किया बेगारी

नवीं बार बुद्ध रूप में मैंने गयासुर राक्षस का वध किया दुष्टों को मारा और उनको बस में किया।

पंथ चलायो राह दिखाई नौ बर विजय हुई हमारी शेष विसन जम्भराज आप अपरंपर अवल दीन से कहिये

नवों अवतारों में मैंने लोगों को सुपथ पर चलाया और सही मार्ग बताया (इस कलियुग में मैंने बिश्नोई पंथ चलाकर लोगों को मार्ग दिखाया) नवों बार मेरी विजय हुई इस समय संसार में आदि आदि अपरंपर भगवान विष्णु स्वयं जाम्भोजी के रूप में उपस्थित हुँ

जाम्भा गोरख गुरू अपारा काजी मुल्ला पढिया पंडित निंदा करे गंवारा

गुरुओं में गुरु जंभेश्वर और गुरु गोरखनाथ दोनों ही अपरम्पर गुरु हैं इनमें कोई भेद नहीं समझना चाहिये क्योंकि दोनों ही मुक्ति का मार्ग बताते हैं काजी मुल्ला पढ़े लिखे और पंडित लोग मेरी निंदा करते हैं क्योंकि वे गंवार है।

दो जख छोड़ भिस्त जे चाहो तो कहिया करो हमारा

हे लोगों यदि नरक छोड़कर स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा रखते हो तो मेरा कहना करो मेरा ज्ञानोपदेश सुनकर ग्रहण कर तदनुसार आचरण करो

इन्द्रपुरी वैकुण्ठे वासो तो पावो मोक्ष ही द्वारा

इससे कर्म और भावनानुसार इन्द्रलोक या वैकुण्ठवास मिलेगा तथा वैकुण्ठ वास होने पर मुक्ति हो जायेगी सकाम कर्मों से इन्द्र लोक या स्वर्ग और निष्काम कर्मों से वैकुण्ठवास मिलता है सकाम कर्मों से कालक्रमानुसार आवागमन का क्रम चालू रहता है पर निष्काम कर्मों से मुक्ति हो जाती है

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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