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तउवा जाग ज गोरख जाग्या
जैसलमेर के राजा जैतसिंह ने जांभोजी महाराज से कहा कि वह उनके लिए एक पत्थरों का मंदिर बनाना चाहता है, परंतु उसके पिता की इस में रुचि नहीं है।गुरु महाराज ने जैतसिंह एवं उसके पिता की इच्छा जान उन्हें यह शब्द कहा:-
ओउम तउवा जाग जु गोरख जाग्या निरह निरंजन निरह निरालम्ब नर निहंचल नरलेपनूं नर निरहारी जुग छतीसो एकै आसन बैठा बरत्या ओर भी अवधु जागत जागूं
हे जिज्ञासु भक्त जनों!योग की साधना तो अन्य अवधूत योगी भी निरंतर सचेत रहते हुए करते हैं, परंतु जैसी साधना गुरु गोरखनाथ ने की, वैसी कोई अन्य साधन नहीं कर सकता।श्री गोरखनाथ जी एक ऐसी ही आसन पर छतीस युगों तक निश्चल, निरालम्ब, निर्लिप्त भाव से, निराहारीं बैठे रहे और उन्होंने परमतत्व परमात्मा निरंजन ब्रह्म की अनुभूति की।
तउवा त्यागज ब्रह्मा त्यागा ओर भी त्यागत त्यागूं
त्याग तो अन्य देव पुरुष देवता भी करते हैं,परंतु जैसा त्याग ब्रह्मा ने किया वैसा अन्य कोई नहीं कर सका।
तउवा भाग जो ईश्वर मस्तक ओर भी मस्तक भागू
भाग्य की रेखाएँ तो अन्यों के मस्तिष्क पर भी होती है,परंतु जैसी भाग्य रेखाएँ ईश्वर के मस्तिष्क पर है,उनकी कोई समानता नहीं है।
तउवा सिर जो ईश्वर गौरी ओर भी कहियत सीरुं
आपसी प्रेम और संबंध तो अन्यों में भी होता है,परंतु शिव और पार्वती जैसा प्रेम संबंध अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
तउवा वीर जो राम लक्ष्मण ओर भी कहियत विरूं
भाई तो और भी है और होते हैं, परंतु राम लक्ष्मण जैसी भाइयों की जोड़ी कोई अन्य नहीं है अर्थात भाई है,परंतु राम लक्ष्मण जैसे नहीं।
तउवा पाग जो दशशिर बांधी ओर भी बांधत पागूं
अपने शिश पर मुकुट तो अन्य राजा महाराजा भी धारण करते हैं, परंतु जैसा मुकुट राजा रावण ने अपने सिर पर धारण किया, उसकी कोई तुलना नहीं है।
तउवा लाज जो सीता लाजी ओर भी लाजत लाजूं
लाजवंती एंव शीलवान तो अन्य स्त्रियां भी होती हैं, परंतु सीता जैसी शीलवान और लाजवन्ती अन्य कोई नारी नहीं हुई।
तउवा बाजा राम बजाया ओर बजावत बाजूं
युद्ध क्षेत्र में बाजे तो और योद्धा भी बजाते हैं, परंतु जो रणभेरी राम ने राम रावण युद्ध में बजाई, वह अतुलनीय है।
तउवा पाज जो सीता कारण लक्ष्मण बांधी ओर भी बांधत पाजू
मेढ या पुल तो अन्य लोग भी बाँधते हैं,परंतु सीता को रावण से मुक्त कराने हेतु, जैसी पाल लक्ष्मण ने समुंदर के मध्य बाँधी, उसकी बराबरी कोई और नहीं कर सकता।
तउवा काज़ जो हनुमत सारा ओर भी सारत काजूं
अन्य लोग भी दूसरों के काम आते हैं,उनके काम संवारते हैं, परंतु जैसा कार्य श्री हनुमान जी ने अपने स्वामी राम के लिए किया वैसा निर्पेक्ष भाव से और इतना बड़ा काम और कोई नहीं कर सकता।
तउवा खाग जो कुम्भकरण महारावण खाज्याओर भी खावत खागूं*
तलवार चलाने वाला तलवार बाज तो अन्य भी हुए हैं,परंतु जैसे खड़क,युद्ध में,महीरावण और कुंभकर्ण ने चलाये वैसे कोई अन्य नहीं चला सकता।
तउवा राज दुर्धोधन माणया ओर भी माणत राजूं
राजसत्ता का सुख और वैभव तो अन्य राजा भी भोगते हैं, परंतु जैसा राज्य सुख दुर्योधन ने भोगा वह अतुलनीय है।
तउवा रागज कन्हड़ बाणी अवर भी कहिये रागू
राग रागनियाँ तो और भी बहुत सी है,परंतु जो राग रागनी कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से सुनाई,वैसी राग इस त्रिलोकी में कोई अन्य नहीं है।
तउवा माघ तुरंगम तेजी टटू तणा भी माघूं
रास्ता तो खच्चर पर बैठकर भी पार किया जा सकता है,परंतु किसी तेज घोड़े पर चढ़कर उसे पार करने का आनंद कुछ और ही है।
तउवा बागज हंसा टोली बुंगला टोली भी बागूं
वैसे तो बगुलों की टोली भी बाग में बैठी अच्छी लगती है, परंतु जब कोई हंसों की डार बाग में बैठती है,तो उसका सौंदर्य अपने आप में अतुलनीय है।
तउवा नाग उधावल वहिये गरुड़ सीया भी नागूं
कहने को तो गरुडसिया भी साँप कहलाता है, परंतु जो रूप और जहर की तेजी उद्यावल नाग में है उसकी कहीं बराबरी नहीं है।
तउवा शागज नागर बेली कूकर बगरा भी शागूं
कुकर वगरा भी एक हरी वनस्पति और नागर बेल भी एक बनस्पति है। परंतु इन दोनों में क्या तुलना ? नागर बेल जैसी छाया या ठण्डक क्या कुत्ता घास से प्राप्त की जा सकती है? अर्थात कहाँ परमात्मा की भक्ति, उनकी शरण में जाना और कहाँ छोटे-मोटे देवताओं,भैरू के वहाँ जा कर मत्था टेकना।
जा जा शैतानी करै उफ़ारु तां तां महत फलियों
जब-जब दुष्ट और शैतान लोग अहंकार में भरकर अनीति करते हैं,तब-तब ईश्वर की महिमा फलीभूत होती है।परमत्तव परमात्मा अवतार धारण करते हैं।
ज़ुरा जम राक्षस ज़ुरा जुरिन्दर कंश केशी चंडरू मध कीचक हिरणाक्षक हिरणाकुस चक्रधर बलदेऊ पावत बासुदेवो मंडलीक कांय न जोयबा?इंह धर ऊपर रतीन रहिबा राजूं*
इस धरती पर बुढ़ापे और मृत्यु को जीतने का दावा करने वाले रावण जैसे राक्षस,इन्द्र को भी जीतने वाले मृत्युंजयी , कंस, केसी,चाणूर , मधु, कीचक , हिरणाकुश,हिरण्यकश्यप, चक्रधारी बलशाली, राजा हुए हैं। वे सब इस संसार से चले गये तथा भगवान कृष्ण ने, उन को उनके किए हुए को कुकृत्यों का फल दिया। इतना ही नहीं और भी अनेक बड़े बड़े मंडलीक राजा महाराजा इस धरती पर आए, परंतु उनका राज्य एवं अस्तित्व रत्ती भर भी नहीं रहा। अर्थात इस संसार में सब कोई,सब कुछ नाशवान है। इन सब को छोड़ परमात्मा को पाने का प्रयास कर।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ
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