गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
देखत भूली को मन मानै
पूर्व प्रसंगानुसार हरिद्वार से आने वाली उस साधु जमात के उस योगी ने श्री जंभेश्वर महाराज द्वारा कहा हुआ पूर्व शब्द सुना तो उसने कहा कि योगासाधना द्वारा जिस ब्रह्मानंद को प्राप्त करने के विषय में आपने कहा उसे तो मैं अनुभव कर चुका हूँ।वह मुझे याद है। उस योगी की ऐसी स्वीकारोक्ति सुन गुरु महाराज ने उसे तथा उसकी जमात के सामने यह शब्द कहा:-
देखत भुली को मन मानै सैवे बिलोवै बांझ सिनानै

तू दूसरों की देखा देखी कर भूलकर मनमानी करता है जो व्यर्थ है पानी का मंथन करने से घी नहीं निकलता बांझ स्त्री का ऋतु स्नान भी व्यर्थ है क्योंकि उससे संतान नहीं हो सकती है।

देखत भुली को मन चौवे भीतर कोरा बाहर भेवै

तु दूसरों की भूल को देखकर मन में इच्छा करता है किन्तु उसकी प्राप्ति के लिए उचित प्रयास नहीं करता है बाहर से तो अनेक प्रकार का दिखावा करता है परन्तु भीतर कोरा है अर्थात बाहर से भीगा हुआ है परन्तु अन्दर से सुखा है

देखत भुली को मन मांनै हरि पर हरि मिलियो शैतांनै

तु दूसरों की देखा देखी वह भूलकर मनमानी करता है हरि का त्याग कर शैतानों से मिल गया है।

देख भुली को मन चैवे आक बखांणै थंदै मेवै

तु दूसरों के देखा देखी व भूलकर मन में इच्छा करता है परन्तु तदनुसार भली बुरी वस्तु की पहचान भी नहीं करता है। अकडोडियों आक के फल को सूखे मेवों से भी अच्छा समझता है

भुला लो भल भूला लो भूला भूल न भूलूं

अतः के भूले हुए योगी! जिस आत्मानंद को तुमने एक बार पा लिया उसे कभी भूल कर भी भूल मत जाना। उस आत्मानंद के सामने इस संसार का सुख, ये योग-भोग के चमत्कार सब व्यर्थ है, इनमें कोई सार नहीं है।

जिहिं ठुठडियै पान न होता ते क्यूं चाहंत फूलूं

सूखे पेड़ के जिस ठूँठ पर पत्ते तक नहीं आते, तुम उस पर पुष्प पाने की कामना क्यों कर रहे हो?अर्थात ये सांसारिक सुख-भोग,ये सिद्धियाँ सूखे पेड़ के ठूँठ के समान है, जिनसे आत्मानंद के पुष्प नहीं प्राप्त किए जा सकते।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 799

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *