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आपै अलेख उपन्ना शिंभू
दूदा मेड़तिया तथा जोधपुर नरेश मालदेव ने श्री जम्भेश्वर महाराज द्वारा प्रलय के प्रकार और महाप्रलय में समस्त सृष्टि का ब्रह्म में लीन होने की कथा सुनने के पश्चात गुरु महाराज से प्रश्न किया कि महाप्रलय के पश्चात जब पुनः सृष्टि प्रारंभ हुई तब सर्वप्रथम किस की और कैसे उत्पत्ति हुई?मालदेव की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:-
आप अलेख उपन्ना सिंभु निरह निरंजन धंधुकारूं आपै आप हुआ अपरंपर नै तद चंदा नै तद सूरूं
अगोचर स्वयंभूं अपने आप ही उत्पन्न हुआ है सुष्टि निर्माण से पूर्व निराकार निरंजन स्वयंभू था और धुंधलेपन की स्थिति थी वह अपरम्प्र अपने आप ही उत्पन्न हुआ है तब चन्द्रमा सूर्य नहीं थे
पवन न पाणी धरती आकाश न थीयों ना तद मास न बरस न घड़ी न पहरु धुप न छाया ताव न सीयों
तब पवन पाणी धरती तथा आकाश नहीं थे तथा मास वर्ष घड़ी पहर धूप छाया शीत और ताप आदि नहीं थे
न तिरलोकी न तारा मण्डल मेघ न माला वर्षा थीयों न तद जोग न नक्षत्र तिथि न बारसीयों ना तद चवदश पुनो मावसीयो
उस समय तीनों लोक तारा मण्डल मेघमाला और वर्षा भी नहीं थी तब योग नक्षत्र तिथि वार पूर्णमासी अमावस्या और महीनों के कृष्ण और शुक्ल अलग अलग दो पक्ष भी नहीं थे
न तद समंद न सागर न गिरि पर्वत ना धौलागिरि मेर थीयों ता तद हाट न बाट न कोट न कसबा विणज न बाखर लाभ थीयों
तथा तब समुद्र सागर गिरी पर्वत धवलगिरी और सुमेरु पर्वत नहीं थे तथा तब हाट रास्ते कोट कस्बे व्यापार धन दौलत और तदजन्य लाभ कुछ भी नहीं थे
यह छत धार बड़े सुलतानों रावण राणा ये दिवाणा हिन्दू मुसलमानुं दोय पंथ नाहीं जुवा जुवा
तब छत्रधारी बड़े बड़े सुल्तान राव राणा दीवान हिन्दू मुसलमान ओर ये दो पंथ अलग अलग पंथ नहीं है
ना तद काम न कर्षण जोग न दर्शन तीर्थवासी ये मसवासी ना तद होता जपिया तपिया ना खच्चर हीबर बाज थीयों
तब काम आकर्षण जोग दर्शनी (जोगी) अथवा मुद्रा तीर्थवासी मासोपवासी जती तपस्वी भी नहीं थे ओर न ही खच्चर घोड़े हाथी थे
ना तद शूर न वीर न खड्ग न क्षत्री रण संग्राम न झूंझ न थीयों ता तद सिंह न स्यावज मृग पंखेरू हंस न मोरा ले ले सूवो
तब शूरवीर तलवार क्षत्रिय युद्ध भुमि ओर युद्ध नहीं थे तब सिंह शिकार मृग पक्षी हंस मोर नीलकंठ शुक आदि थे
रंग न रसना कापड़ चौपड़ गेहुँ चावल भोग थीयो माय न बाप न बहण न भाई ना तद होता पुत धीयो
तब रंग स्थाई कपड़े घी तेल आदि चौपड़ (पुस्तकें )गेहुँ चावल तथा किसि प्रकार के भोग नहीं थे तब माँ बाप बहन भाई बेटा बेटी आदि रिश्ते भी नहीं थे
सास न सबदुं जीव न पिण्डूं ना तद होता पुरूष त्रियों पाप न पुण्य न सती कुसती ना तद होती मया न दया
तब श्वास शब्द जीव शरीर स्त्री पुरूष नहीं थे तथा तब पाप पुण्य सत्यवादी असत्यवादी पुरूष नहीं थे ओर कृपा दया आदि उदात्त भाव भी नहीं थे
आपै आप उपन्ना सिंभु निरह निरंजण धंधुकारू आपो आप हुआ अपरंपर हे राजेन्द्र लेहु विचारूं
अगोचर स्वयंभू अपने आप ही उत्पन्न हुआ है सृष्टि निर्माण से पूर्व निराकार निरंजन स्वयंभू था और धुंधलेपन की स्थिति थी मैं अपरम्पर अपने आप ही उत्पन्न हुआ हूँ हे राजेन्द्र इस बात पर विचार करो
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका
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