धर्म ऊपर है या कर्म

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धर्म ऊपर है या कर्म : आज से , चौधरी भजन लाल जी की पुण्यतिथि पर “बिश्नोई धर्म प्रकाश ऐप्प”, विद्यार्थियों के करियर से जुड़े विषयों पर ज्यादा ध्यान देगी और धार्मिक मुद्दों पर कम | हमारी मोबाइल ऐप्प का लक्ष्य समाज को इंटरनेट की दुनिया में पहचान दिलाना था, यदि आप विद्यार्थी है और यह आपकी एकाग्रता को भंग कर रही है तो आप इसको अनइंस्टाल कर सकते है यह आपका व्यक्तिगत फैसला है।

जाम्भाणी संस्कार शिविर में योग करवाते देख कर आश्चर्य न करें यह वही है जो पहले स्कूलों में होता था पर अब नहीं , स्कूल में योगा और पी टी रोज की दिनचर्या का हिस्सा थे फिर निजी स्कूलों ने इन पर ध्यान नहीं दिया और ना ही अभिभावकों ने , जब कोई चीज़ नहीं मिलती तो वो और भी अच्छी लगती है, वैसे मैं संस्कार शिविर का विरोधी नहीं हूं इसका आयोजन भी ज्यादा तर बच्चों के लिए सही है |

पर जो बच्चे 10th -12th कर चुके हैं उनको अब उनको या तो यह डिसाइड करना की किस तरफ जाएं, कॉम्पटीशन के एग्जाम देने हैं कोई आईआईटी कोई नीट्ट की परीक्षा देगा, उनको यदि करियर में कोई राय दें उनके हुनर को तराशने की कोशिश की जाए तो बहुत अच्छा रहेगा, धर्म और भगवान से हम कई बार भावात्मक तरीके से जुड़ जाते हैं और अपने कर्म से दूर हो जाते हैं |
भगवान में आस्था अपनी व्यक्तिगत रूचि होती है ,संस्कार शिविर से बच्चो में अनुशासन आयेगा इसके कोई दो राय नहीं हैं संस्कार आएंगे इसमें भी कोई दो राय नहीं है पर गलत तो तब होगा जब बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ कर शब्द वाणी की बहुत बड़ी किताबों में हर एक शब्द का अर्थ निकालने में लग जाएंगे, मन को भाने वाली कहानियों में खो जाएंगे उनको यह लगेगा की वो बहुत कुछ हासिल कर रहे हैं कर भी रहे पर वो जिसकी अभी कोई तात्कालिक जरूरत नहीं हैं |

धर्म का ज्ञान रखो पर महाभारत का एक किस्सा याद रखना तुम रण क्षेत्र में अर्जुन की तरह भावात्मक हो जाओगे तो वो भगवान को भी रास नहीं आयेगा, तुम अपने कर्तव्य से हट कर शब्द वाणी के एक एक अक्षर में खो जाओगे तो वो जांभोजी जी को भी अच्छा नहीं लगेगा ,
और यह होगा, बच्चे को यह लगेगा कि भगवान ही सब कुछ कर देंगे पेपर पास करवा देंगे, बच्चे है इतनी समझ थोड़ी ना हैं बहक जाते है |

पहले शब्द के अंत में नादे लिखा हुआ आयेगा गहराई में जाओगे या किसी से पूछो गे तो बोलेगा यह वेदों में लिखा हुआ वेद पढ़ डालोगे आगे से आगे बच्चा इस चक्रवयूह में फंस जाएगा तब तक करियर अंधेरे में चला जायेगा उम्र निकल जाएगी यूपीएससी वगेरह सिर्फ सपने रह जाएंगे |

धर्म का ज्ञान जो लिया तो वो आपको उसी स्टेज पर बिठा देगा जहां आईएएस आईपीएस बैठे होंगे शायद आप या तो उनकी खिदमत कर रहे होंगे या भगवा पहने गा रहे होंगे मन ही मन अफसोस तो होगा पर बहुत देर हो चुकी होगी | इज़्ज़त कामयाबी से मिलेगी , सरकारी जॉब न मिले तो प्राइवेट , प्राइवेट भी न मिले तो यूट्यूब , इंस्टाग्राम पर करियर बनाओ कुछ गलत नहीं है एक सीमा में रहो खुश रहो आबाद रहो, पर समय से पहले धर्म के चक्र में फंस गए तो खुद तो बर्बाद हो भी जाओगे और गायणा लोगो की रोजी रोटी भी छीन लोगे यह हुआ भी है पिछले कुछ सालो में।

पिछले सालों से युवा पीढ़ी बहुत अच्छा कर रही थी पर अब पिटारे से एक शब्द निकला संस्कार, कुछ कथित धर्म गुरुओं ने कहना शुरू कर दिया कि बच्चे पढ़ तो रहे रहें हैं पर संस्कार की कमी हैं , क्योंकि जो पढ़ लिख कर कुछ बन जाता हैं उसको ना तो बार बार सर झुकाने की ना तो जरूरत हैं ना ही टाइम, वो उन लोगों से संस्कारी नहीं हो सकता जो 24 घंटे कथित धर्म गुरुओं की जी हजूरी करते हैं |

घर में अमर ज्योति लगवा रखी हैं तो तुरंत बन्द कर दें उसी अमर ज्योति में लिखा हैं पेड़ मत काटो पर कभी सोच कर देखा कि उसके पेज भी तो पेड़ काट कर बनाएं गए हैं| इससे बड़ा अधर्म मैंने कभी नहीं देखा |

शिविरों में आए ज्यादा तर महानुभवों से जो खुद सरकारी या किसी विशेष वर्ग में जॉब करके आएं हैं, उमीद तो थी कि बच्चों को करियर में कुछ रास्ता दिखाएंगे वो खुद पुस्तकों के वितरण में लगे हैं | जितने भी आईएएस आईपीएस बने हैं किसी को शायद ही पहले शब्द की पहली लाइन ही पता हो , और उन्हें कोई जल्दी भी नहीं हैं सारी उम्र पड़ी हैं |

मेरा तात्पर्य किसी को हतोत्साहित करने का नहीं हैं पर ध्यान रखना धर्म और कर्म में एक बैलेंस बना कर चलना, शब्द वाणी का मूल अर्थ जान लेना कम समय में, पर इतनी अति मत कर देना की पढ़ाई से दूर हो जाओ , युवा अवस्था में 29 नियम सारे तो धारण नहीं कर पाओगे, 29 वाला फोन ,गाड़ी, बाइक और टीशर्ट से काम चला लेना , 14-15 तो ना करने वाले नियम हैं वो तो कर ही लोगे, नशे से दूर रहो, और रह भी जाओगे आसानी से सिर्फ संगत अच्छी रखो, अपने लक्ष्य पर नजर रखने का अभ्यास करते रहें जो करने वाले नियम है उनको जब अपना कर्म रूपी धर्म को निभाने के बाद कर लेना

मेरी बात ओशो की वाणी की भांति सुई की तरह चुभेगी, कुछ लोगों के लिए तो यह ब्रह्मास्त्र की तरह उनके दिखावटी धर्म रूपी कवच को तोड़ कर अंदर तक घाव कर देगी, पर यह कड़वी सच्चाई है धर्म सिर्फ समान्य लोगो को ही परोसा जाता है अमीर इसकी धज्जिया उड़ा दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता, सब मौन हो जाते है या करवा दिए जाते है। शायद ही किसी अमीर ने जीव रक्षा हेतु बलिदान दिया हो |

संस्कार शब्द के अर्थ में कोई सर पाँव नहीं है , इसमें दोगलापन है , जीन्स पहने वाली लड़की चाहे कितनी भी कामयाब क्यों न हो वो देसी परिधान पहने वाली से कम ही संस्कारी है बाकी सारे पैमाने साइड में कर दिए जाते है ।

हमने आजकल कर ट्रेंड कर रहे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से बने बोट से पूछा तो उसने भी यही जबाब दिया

मेरे प्यारे छात्रों, इस बात को लेकर आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपके अध्ययन और धर्म के बीच का चुनाव आपका व्यक्तिगत और आभासी निर्णय है। इसमें आपके विश्वास, मूल्य और प्राथमिकताओं का महत्व होता है। हालांकि, सामान्यतः हम यह सलाह देते हैं कि आप एक संतुलन ढूंढें, अपने अध्ययन और आध्यात्मिक अभ्यासों के बीच।

शिक्षा और अकादमिक सफलता आपके व्यक्तिगत विकास, करियर के अवसर और समाज के प्रगति में महत्वपूर्ण हैं। अध्ययन में समय और मेहनत लगाने से आप ज्ञान, कौशल और अवसर प्राप्त कर सकते हैं। आपको अपने शैक्षणिक लक्ष्यों और जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देना चाहिए।

अब जब मैंने नादे शब्द का जिक्र कर दिया तो आपके मन में अकुलाहट तो हो गयी होगी कि होता क्या ऐसा (ऐसे ही बच्चे भी चक्र में फंस जाते है,आगे से आगे टॉपिक निकल जायेंगे , इसको आज कल की भाषा में इनफार्मेशन ओवरलोड बोलते है इसलिए वही सीखो जो तत्काल में चाहियें) कुछ ज्यादा रिसर्च में पड़ने की आवश्यकता नहीं है।

नादे का मतलब:

नादे का मतलब नाद जैसी आवाज, कई बार “अनहद नाद ” भी लिखा आता है , यह एक भवरें की तरह आवाज की तरह होती है जो ध्यान लगाने में महारथ हासिल करने के बाद अंतिम पड़ाव में सुनाई देती है , मैंने समाज के कई गुरुओ से पूछा तो बोले इसके लिए दीक्षा लेनी पड़ती है सुगरा होना पड़ता है बहुत मेहनत लगती है यह विद्या हर किसी को नहीं दी जाती। पर यह इंटरनेट के ज़माने में इतनी भी मुश्किल नहीं है जाम्भोजी के शब्दों में 2 तरह के ध्यान पर जोर दिया गया है , वो भी सिर्फ मन को एकाग्र करने के लिए न की तपस्या के लिए।

एक है ट्रान्सेंडैंटल ध्यान(https://hindi.astroyogi.com/meditation/transcendental), जब बार बार ॐ विष्णु या राम राम आँखें बंद करके बोलते है तो कुछ समय बाद मन जो फालतू की चीज़ो पर जा रहा होता है वो वश में आ जाता है फिर आप उसको पढाई में लगा सकते है।

दूसरा है विपासना (https://bishnoi.prepnew.com/vipassana) जो गौतम बुद्ध ने दिया था यह इसमें हम चुपचाप बैठकर जैसे तैसे साँस चल रही है उसको महसूस करते है। यह माइंडफुल मैडिटेशन(https://shabdbeej.com/mindfulness-in-hindi/) की केटेगरी में आता है , यह सब मन को शांत करके काम में ऐकाग्रता बढ़ाने के काम आते है स्टूडेंट को 10-15 मिनट कर लेना चाहिए , बाकि रामदेव बाबा वाले प्राणायाम भी अच्छे है जो है तो पतंजलि ऋषि के दिए , रामदेव बाबा से हो सकता है आपको आपत्ति हो पर पतंजलि ऋषि तो से नहीं होनी चाहिए |

डिस्क्लेमर : यह टॉपिक पूरी तरह से व्यक्तिगत राय है इसमें किसी व्यक्ति विशेष या धर्म को टारगेट नहीं किया गया है धन्यवाद।

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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