नाना की पहलवानी के किस्से सुन किरण ने सीखे दांव
घरवालों का इनकार, पर नाना ने दंगल में उतारा
मैं दसवीं में थी तो कुश्ती लड़ने की रुचि हुई। घरवालों को बताया। मगर वे नहीं माने। वे नहीं चाहते थे कि बेटी दंगल में लड़े। नाना रामस्वरूप खिचड़ इस बात से इत्तफाक नहीं रखते थे। नाना ने मेरा साथ दिया। वो खुद भी पहलवानी करते थे। नाना का साथ मिलने के बाद मैं कुश्ती लड़ने लगी। दांवपेंच सीखने के बाद दंगल में उतारी। उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। ननिहाल में शुरुआत करने के बाद शहर पहुंची। इसके बाद हिसार के महाबीर स्टेडियम में रेसलिंग कोच विष्णुदास से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। बीते 7 सालों में एक के बाद एक कई सफलता हासिल की। कुश्ती में बेहतर प्रदर्शन के बाद ही केंद्र सरकार ने रेलवे में टीसी के पद पर नियुक्ति भी दी है।
– किरण गोदारा